मदरसा में गीता व कुरान पढ़ाना कैसा है ?

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मदरसा में गीता व कुरान पढ़ाना कैसा है ?

सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में कि एक मदरसा में संस्कृत पढ़ाना शुरू किया गया जिस के प्रचार में पेपर में ऐड दिया गया कि (मज़हब हिंदू व मुस्लिम को मज़बूत करने के लिए पढ़ाए जा रहे हैं गीता व कुरान) ऐसा जुमला बोलना, लिखना कैसा है ? नेज़ यह कहना कि हिंदू व मुस्लिम कल्चर में ज़्यादा फर्क़ नहीं है और यह फर्क़ सिर्फ इंसान की सोच ने बढ़ाया है, नेज़ ज़ैद का यह कहना कि मैंने तमाम धर्मों को मुत्तहिद करने और मोहब्बत व भाई चारगी का पैगाम देने के लिए संस्कृत को अपनाया और मदर्से में कुरान व गीता को साथ-साथ रखा
(१) मज़हब हिंदू मुस्लिम को मज़बूत करना
(२) हिंदू मुस्लिम कल्चर में ज़्यादा फर्क नहीं
(३) तमाम धर्मों को एकत्तरित करना
यह सब जुमले बोलना लिखना कैसा है ? कुरान व हदीस की रौशनी में जवाब इनायत फरमाएं नवाज़िश होगी ?

साईल : नूरुल हसन अशरफी (बरेली शरीफ)

जवाब : संस्कृत या दिगर ज़बानों का इल्म हासिल करना यानी पढ़ना पढ़ाना नाजायज़ व हराम नहीं है जबकि उन किताबों और ज़बानों को और उनके अंदर दर्ज सब वाक़ियात को हक़ ना मानता हो, और पढ़ने का मक़सद फिर्क़हा ए बातिला का रद्द करना और सुन्नत को उजागर करना हो, तो बेशक हर ज़बान का इल्म हासिल करना जायज़ है बल्कि दीन की खिदमत की नियत शामिल हो तो सवाब भी है,

अलबत्ता यह अक़ीदा रखना कि मज़हब हिंदू व मुस्लिम को मज़बूत करेंगे कुफ्र है, क्योंकि कुफ्र पर राज़ी होना या फेले कुफ्र या क़ौले कुफ्र पर मदद करना कुफ्र है, यूं हीं उनकी किताबों को हक़ मानना उस किताब से मोहब्बत करना कुफ्र है

अल्लामा शरीफुल हक़ अमजदी अलैहिर्रहमा तहरीर फरमाते हैं कि गीता वगैरा को तोहफा में देना यह कुफ्र है, इसलिए कि इंसान उस चीज़ को तोहफा में देता है जिसको वह ज़्यादा पसंद करता है, और गीता को अच्छा मानना और उसका पढ़ना और अमल करना उसको कुरान के साथ करना यानी कुरान के बराबर समझना या गीता को कुरान की तरह सच्ची किताब मानना या गीता को मदरसा में पढ़ाना यह सब कुफ्र है, इसलिए कि गीता में बहुत से कुफ्री अल्फाज़ हैं इसलिए उसका पढ़ना कुफ्र के दर्जे में है(फतावा शारेह बुखारी जिल्द २ सफा ५६५)

और यह कहना कि हिंदू मुस्लिम कल्चर में अंतर यानी फर्क़ नहीं यह भी कुफ्र है, क्योंकि हिंदू जहन्नमी और मुसलमान जन्नती है और यह कुरान के खिलाफ है, इरशाद ए रब्बानी है

’ لَا يَسْتَوِىْٓ اَصْحٰبُ النَّارِ وَاَصْحٰبُ الْجَـنَّۃَ ۔ اَصْحٰبُ الْجَـنَّةِ هُمُ الْفَآئِزُوْنَ  ‘

दोज़ख वाले और जन्नत वाले बराबर नहीं जन्नत वाले ही मुराद को पहुंचे(सूरह ह़श्र२०)

नेज़ फरमाता आता है

’ قُلْ لَّا يَسْتَوِى الْخَبِيْثُ وَالطَّيِّبُ وَلَوْ اَعْجَبَكَ كَثْرَةُ الْخَبِيْثِ‌ ۚ فَااتَّقُوا اللّٰهَ يٰٓاُولِى الْاَ لْبَابِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ‘

तुम फरमा दो कि गंदा और सुथरा बराबर नहीं अगर्चे तुझे गंदे की कसरत भाए, तो अल्लाह से डरते रहो ऐ अक़्ल वालो! की तुम फलाह पाओ(सूरह माइदह १००)

नेज़ यह कहना कि तमाम धर्मों में मोहब्बत व भाईचारगी का पैग़ाम देने के लिए है, यह भी कुरान के खिलाफ है इरशाद ए रब्बानी है

’ إِنَّمَا یَنْہَاکُمُ اللَّہُ عَنِ الَّذِینَ قٰتَلُوکُمْ فِی الدِّینِ وَأَخْرَجُوکُم مِّن دِیَارِکُمْ وَظٰہَرُوا عَلٰٓی اِخْرَاجِکُمْ أَن تَوَلَّوْہُمْ وَمَن یَتَوَلَّہُمْ فَأُوْلَئِکَ ہُمُ الظَّالِمُونَ ‘

अल्लाह तुम्हें उन्हीं से मना करता है जो तुम से दीन में लड़े या तुम्हें तुम्हारे घरों से निकाला या तुम्हारे निकालने पर मदद की, तो ना उनसे दोस्ती करो और जो उनसे दोस्ती करें तो वही सितमगार हैं(सूरह मुमतहिन्ना९)

हासिल ए कलाम यह है कि जिस नियत से कुरान व गीता पढ़ाने का  सवाल में ज़िक्र है इस नियत से पढ़ना पढ़ाना नाजायज़ व हराम बल्कि कुफ्र है, ऐसे शख्स पर लाज़िम है कि इन हरकात से बाज़ रह कर तजदीदे ईमान करे और शादी शुदा हो तो तजदीदे निकाह व तजदीदे बैअत करे अगर ऐसा ना करे तो वहां के तमाम मुसलमान पर लाज़िम है कि समाजि बाई काट कर दें जैसा कि कुरान शरीफ में है

’ وَاِمَّا یُنْسِیَنَّکَ الشَّیْطٰنُ فَلَا تَقْعُدْ بَعْدَ الذِّکْرٰی مَعَ الْقَوْمِ الظّٰلِمِیْنَ  ‘

और जो कहीं तुझे शैतान बहलावे तो याद आए पर ज़ालिमों के पास ना बैठ.(सूरह इनआम ६८)

       والله و رسولہ اعلم بالصواب
अज़ कलम  
ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी   उतरौला


हिन्दी ट्रांसलेट 
 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी 

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