हयातुन्नबी पर रोशन दलील रिसाला

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(بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ)

( اِنَّ اللہَ حَرَّمَ عَلَی الْاَرْضِ اَنْ تَاْکُلَ اَجْسَادَالْاَنْبِیَآءِ فَنَبِیٌّ اللہَ حَیٌّ یُرْزَقٌ(الحدیث)

 बेशक अल्लाह तआला ने अम्बियाए किरम अलैहिमुस्सलाम के जिस्मों को जमीन पर खाना हराम फरमा दिया है लिहाजा अल्लाह के जिंदह हैं और रोजी दिए जाते हैं 

 



हयातुन्नबी पर रोशन दलील 



लेखक
खलीफ़ए,हुज़ूर ,अर्शदे ,मिल्लत 

मौलाना ,ताज ,मोहम्मद  क़ादिरी ,वाहिदी ,उतरौलवी 

साहब ,क़िबला ,दामत ,बरकातुहुमुल आलिया 
गायडीह पोस्ट चमरुपुर जिला बलराम पुर यू पी 

हिंदी ट्रांसलेट एवं नाशिर 

मौलाना मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी

दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश 

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 (तक़रीज़ ए जलील)

खलीफ ए हुज़ूर अर्शदे मिल्लत, नाशिरे मसलके आला हज़रत, हज़रत अल्लामा मौलाना मोहम्मद इब्राहीम खाँ, रज़वी, अमजदी, अर्शदी, खतीब ओ इमाम गौसिया मस्जिद शांति नगर भिवंडी मुंबई महाराष्ट्र
الحمدللہ الذی خلق سبع سموات طباقا ھوالرحمن والصلواۃ والسلام علی محمد سید الانس والجان وعلی آلہ وصحبہ وشیخ الشیوخ امام احمد رضا خان
   ज़ेरे नज़र रिसाला हयातुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर रौशन दलील खलीफ ए हुजूर अर्शदे मिल्लत मौलाना ताज मोहम्मद वाहिदी अर्शदी दामतबरकातुहुमुल आलिया की इल्मी शाहकार है जो हज़रत मौसूफ ने एक सवाल के जवाब में मुस्तक़िल रिसाला तहरीर फरमाया है दौरे हाज़िर में इस तरह इल्म दोस्त उलमा बहुत ही कम नज़र आते हैं अल्लामा मौसूफ की बहुत सी जिम्मेदारियां हैं जिसकी वजह से अक्सर मसरूफ रहते हैं बावजूद इसके आपने हयातुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दलाईल व बराहीन की रौशनी में इस तरह वाज़ेह किया है कि जो हयातुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर एतराज़ करते हैं वह भी पढ़ ले तो सरकारे आला हज़रत अलैहिर्रहमां का यह शेर कहने पर मजबूर हो जाएंगे 
तू ज़िंदा है वल्लाह तू ज़िंदा है वल्लाह
मेरे चश्मे  आलम  से  छुप जाने  वाले
     हयातुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हज़रत शैख अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहलवी रहमतुल्लाहि अलैह के दौर तक किसी को भी ऐतराज़ ना हुआ बल्कि अपने आप को मुसलमान कहने वाले सभी यह मानते थे कि अंबिया अलैहिमुस्सलाम जिंदा हैजैसा कि हज़रत शैख अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहलवी रहमतुल्लाहि अलैह अशअतुल लमआत जिल्द १ सफा ५७४ में तहरीर फरमाते हैं,
حیات انبیاء متفق علیہ است ہیچ کس را دروے خلافےنیست حیات جسمانی دنیاوی حقیقی نہ حیات معنوی روحانی چنانکہ شہدا راست
        यानी अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम जिंदा हैं और उनकी ज़िंदगी सब मानते आए हैं किसी को इसमें एख्तिलाफ नहीं है, उनकी ज़िंदगी जिस्मानी हक़़ीक़ी दुनियावी है शहीदों की तरह सिर्फ मानवी रूहानी नहीं है इस इबारत से बिल्कुल ज़ाहिर व बाहिर है की अंबिया के हयात का इनकार करने वालों और उसमें शक व शुब्हा करने वालों का अक़ीदा नया है जो  बारहवीं सदी हिजरी के बाद पैदा हुए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में इस तरह के अक़ाएद रख कर जहन्नम में अपना ठिकाना तैयार कर लिए इसी वजह से अल्लामा मौसूफ ने इस पर आसान उर्दू ज़बान में एक मुस्तक़िल रिसाला लिखा ताकि अवामे अहले सुन्नत बदमज़हबों के शर से महफूज़ रहे उम्मीदे क़वी है कि इस से अवामे अहले सुन्नत को भर पूर फायदा होगा 

      अल्लाह तआला तमाम अहबाबे अहले सुन्नत को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बे इंतहा मोहब्बत करने की तौफीक़ बख्शे और बदमज़हबों से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुस्ताखों से दूर व नफूर रहने का जज़्ब ए बेकरां अता फरमाए और इस रिसाला को अवाम व ख्वास में मक़बूल फरमाए,
آمین یارب العلمین بجاہ سید المرسلین ﷺ

मोहम्मद इब्राहीम   खान

 अमजदी क़ादरी रज़वी अर्शदी बलरामपुरी

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(तअस्सुराते अर्शदिय्या)

   शम्सुत्तरीक़ा, बदरुश्शरिआ, गैज़ुल वहाबिया खलीफ ए खुल्फा ए आला हज़रत, अर्शदुस सालिकीन शैख अबुल बरकात मोहम्मद अर्शद सुब्हानी मद्दज़िल्लहुल आली वन्नूरानी (बानी व सरपरस्त ए आला माह नामा अर्शदिया)

    मुहिब्बे ग्रामी अज़ीज़ुल क़द्र, आलिमे शरीअत सालिके राहे तरिक़त, पैकरे अख्लास व मोहब्बत हामिल निस्बते अर्शदीयद, ताजे मिल्लत हज़रत अल्लामा अश्शाह ममौलाना ताज मोहम्मद वाहिदी अर्शदी मद्दज़िल्लहुल आली ने अक़ीदा ए हयातुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अहम तरीन उनवान पर नागौर शरीफ अजमेर मुअल्ला राजस्थान से किसी साईल के भेजे गए सवाल के जवाब में निहायत पुर मगज़ मुदल्लल और जाने-माने तहरीर बनज़ीर सुपुर्दे क़लम फरमा कर एक अज़ीम कारनामा अंजाम दिया है,अल्हम्दुलिल्लाह तआला अक़ीद ए हयातुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़तईस्सुबूत है, कई आयाते क़ुरआनियां व अहादिसे नबविय्या  अला साहिबहस्सलातो वस्सलाम  के सुबूत में जो नुसूसे  क़तईया से दलाईल के अंबार लगाए हैं वह लाजवाब व बेमिसाल हैं और खुद उनकी इल्मी क़ाबिलियत व तहक़ीक़ी आला सलाहियत का मुंह बोलता सबूत हैं। 

   अल्लाह तआला जल्ला जलालहु हजरत ताज ए  मिल्लत के जुमला, दीनी, मज़हबी, मस्लकी,मिल्ली,तक़रीरी, तदरीसी, और तसनीफी खिदमात को शर्फे क़ुबूलियत बख्शे, और हम सभी को दीन व सुन्नियत व मसलके आला हज़रत पर इस्तक़ामत,खात्मा बर ईमान,जन्नतुल बक़ी शरीफ में मदफन, बे हिसाब हतमी मगफिरत और जन्नतुल फिरदौस में नबी ए करीम व रऊफुर्रहीम आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का क़ुर्बे खास नसीब फरमाए।  
آمین ثم آمین بجاہ سید المرسلین صلی اللہ علیہ والہ واصحابہ اجمعین
, फक़त वस्सलाम 

फक़ीर अब्दुल मुस्तफा अबुल बरकात मोहम्मद अर्शद सुब्हानी गुफरलहुन्नूरानी

पंजाब (पाकिस्तान)
२५रबईउलआखिर १४४३हि 
१दिसेम्बर२०२१ई बुध 

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(निगाह ए अव्वलीन)

لک الحمد یااللہ جل جلالہ والصلوۃ والسلام علیک یا رسول اللہ ﷺ

   एक साल क़ब्ल राजस्थान के रहने वाले मोइनुद्दीन नामी एक साहब ने हयातुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुतअल्लिक़ एक सवाल इरसाल किया और जवाब के लिए फक़ीर को बार बार मुतवज्जेह करते रहे फक़ीर मसरूफियात की वजह से नज़र अंदाज़ करता रहा मगर इसरार करते रहे तो कुछ कलिमात कुरआन व हदीस और अक़वाले अइम्मा व फुक़्हा से क़लम बंद फरमाया जो फतावा मसाइले शरईय्या जिल्द १ मुतअल्लिक़ ए नबूवतो रिसालत के बयान में मौजूद है, मगर चंद माह से कई साहब की फरमाइश हुई कि इस फतवा को अलग रिसाला की शकल दे दिया जाए ताकि लोड करके पढ़ने में आसानी हो, फक़ीर फतावा मसाइले शरईय्या जिल्द सोम की तैयारी में लगा हुआ है इसलिए तवज्जेह ना दे सका, फिर मुहिब्बे ग्रामी खलीफ ए हुजूर अर्शद ए मिल्लत हज़रत अल्लामा मौलाना मोहम्मद इब्राहीम खान रज़वी अमजदी साहब क़िबला के ज़रिआ कुछ लोगों ने रिसाला की फरमाइश की तो फक़ीर ने कुछ वक़्त निकालकर इस काम को अंजाम दिया  जो उर्दू में था फिर मुहिब्बे ग्रामी मौलाना मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी साहब ने हिंदी  में करने के लिए  इजाजत तलब किए इजाजत मिलते ही मौसूफ़ ने काम करना शुरू कर दिया अल्लाह ताला जजाए खैर अता फरमाए आमीन वक़्त दामन गीर है कहीं कुछ खामी नज़र आए तो फक़ीर को मुत्तला फरमाएं ताकि गलतियों की इस्लाह की जाए,दुआ है मौला तआला इस रिसाला को क़ुबूल फरमाए और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़ ओ तुफैल इस रिसाला को मक़बूले अवाम ओ ख्वास बनाए,
آمین یارب العلمین بجاہ نبی الکریم علیہ الصلوۃ والتسلیم

फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी

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सवाल 

  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला में की अंबिया ए किराम अपनी क़ब्रों में ज़िंदह हैं यह कहां से साबित है ? मुदल्लल जवाब अता फरमाएं मेहरबानी होगी ?
साईल: मोइनुद्दीन नक्शबंदी रोन शरीफ जिला नागौर शरीफ(अजमेर राजस्थान)
जवाब
 الحمد للہ رب العلمین الصلوٰۃ والسلام علی جمیع الانبیاءوالمرسلین وخاتم النبیین وعلیٰ الہ واصحابہ واہل بیتہ اجمعین

      बेशक अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम अपनी क़ब्रों में जिंदा हैं  रिज़्क़ दिए जाते हैं और यह कुरान व हदीस से साबित है, वहाबियों देव बंदीयों का अक़ीदा है कि हुजूर मर कर मिट्टी में मिल गए (माअज़ अल्लाह) यह कुरान व हदीस के खिलाफ है क्योंकि अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम के जिस्म को मिट्टी नहीं खा सकती मरवी है कि हज़रत दाऊद अलैहिस्सलातो वस्सलाम ने बैतूल मुक़द्दस की बुनियाद उस मक़ाम पर रखी थी जहां हजरत मूसा अलैहिस्सलातो वस्सलाम का खेमा नस्ब किया गया था, उस इमारत के पूरा होने से पहले हज़रत दाऊद अलैहिस्सलातो वस्सलाम की वफात का वक़्त आगया आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम ने अपने फर्ज़ंद हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलातो वस्सलाम को तकमील की वसीयत फरमाई चुनांचे आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम ने जिन्नात को उसकी तकमील का हुक्म दिया, जब आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम की वफात का वक़्त क़रीब पहुंचा तो आपने दुआ की कि आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम की वफात जिन्नात पर ज़ाहिर ना हो ताकि वह इमारत की तकमील तक मसरूफे अमल रहें फिर हुआ भी यही कि हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलातो वस्सलाम का विसाल हो गया और आप उसी तरह लाठी के सहारे सालों खड़े रहे जिससे रोज़ रौशन की तरह ज़ाहिर है कि अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम बाद विसाल मिट्टी में नहीं मिलते बल्कि एक घर से दूसरे घर की तरफ मुन्तक़िल हो जाते हैं वरना १ साल में जिस्म सड़ जाता बदबू आने लगती मगर हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के जिस्म में जर्रा बराबर भी तगैय्युर (बदलाव) ना हुआ, जिन्नात रात व दिन काम करते रहे जब काम मुकम्मल हो गया तो हुक्मे ईलाही से दीमक ने लकड़ी को जिस पर टेक लगाए हुए थे खा लिया फिर आप ज़मीन पर आ गएचुनाचे इरशादे रब्बानी है’’

( فَلَمَّا قَضَیْنَا عَلَیْهِ الْمَوْتَ مَا دَلَّهُمْ عَلٰى مَوْتِهٖٓ اِلَّا دَآبَّةُ الْاَرْضِ تَاْكُلُ مِنْسَاَتَهٗۚ-فَلَمَّا خَرَّ تَبَیَّنَتِ الْجِنُّ اَنْ لَّوْ كَانُوْا یَعْلَمُوْنَ الْغَیْبَ مَا لَبِثُوْا فِی الْعَذَابِ الْمُهِیْنِ)

        ‘‘फिर जब हमने उस पर मौत का हुक्म भेजा जिन्नों को उसकी मौत ना बताई मगर ज़मीन की दीमक ने कि उसका आसा खाती थी फिर जब सुलैमान ज़मीन पर आया जिन्नो की हक़ीक़त खुल गई अगर गैब जानते होते तो खवारी के अज़ाब में ना होते(सूरे सबा १४)

   तफसीर ए सिरातुल जिनान में है की हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलातो वस्सलाम ने बारगाहे ईलाही में दुआ की थी की उनकी वफात का हाल जिन्नात पर ज़ाहिर ना हो ताकि इंसानों को मालूम हो जाए की जिन गैब नहीं जानते, फिर आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम मेहराब में दाखिल हुए और हस्बे आदत नमाज़ के लिए अपने आसा के साथ टेक लगाकर खड़े हो गए, जिन्नात दस्तूर के मुताबिक़ अपनी खिदमतों में मशगूल रहे और यह समझते रहे कि हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलातो वस्सलाम जिंदा हैं और हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलातो वस्सलाम का अरस ए दराज़ तक ईसी हाल पर रहना उनके लिए कुछ हैरत का बाअस नहीं हुआ, क्योंकि वह बारहां देखते थे कि आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम एक माह दो माह और इससे ज़्यादा अरसा तक इबादत में मशगूल रहते हैं और आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम की नमाज़ बहुत लंबी होती है, हत्ता कि आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम की वफात के पूरे एक साल बाद तक जिन्नात आप की वफात पर मुत्तला ना हुए, और अपने खिदमतों में मशगूल रहे यहां तक कि अल्लाह के हुक्म से दीमक ने आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम का आसा खा लिया और आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम का जिस्म मुबारक जो लाठी के सहारे से क़ायम था ज़मीन पर तशरीफ ले आया, उस वक़्त जिन्नात को आप अलैहिस्सलातो वस्सलाम की वफात का इल्म हुआ। (तफ़सीर ए सिरातूलजिनान सूरे सबा १४ )

   मालूम हुआ कि अंबिया ए किराम बाद विसाल मिट्टी में नहीं मिलते बल्कि वह जिंदा जावेद होते हैं और अपने रब की तरफ से रिज़्क़ पाते हैं नेज़ नमाज़ भी पढ़ते हैं जैसा कि मेराज की शब हजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलातो वस्सलाम को अपने कमरे में नमाज पढ़ते देखा,हदीस शरीफ में है’’

عَنْ أَنَسٍ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَرَرْتُ عَلَی مُوسٰی وَهُوَ يُصَلِّي فِي قَبْرِهِ وَزَادَ فِي حَدِيثِ عِيسَی مَرَرْتُ لَيْلَةَ أُسْرِيَ بِي
(صحیح مسلم موسیٰ (علیہ السلام) کے فضائل کا بیان حدیث نمبر۶۱۵۸)

    ‘‘हज़रत अनस रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू फरमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मैं हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास से गुज़रा इस हाल में कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अपनी क़ब्र में नमाज़ पढ़ रहे थे, ईसा की रिवायत में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मेराज की रात मे 
गुज़रा। और सनन निसाई में है’’

عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ، ‌‌‌‌‌‏أَنّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:‌‌‌‏ أَتَيْتُ لَيْلَةَ أُسْرِيَ بِي عَلَى مُوسَى عَلَيْهِ السَّلَام عِنْدَ الْكَثِيبِ الْأَحْمَرِ وَهُوَ قَائِمٌ يُصَلِّي فِي قَبْرِهِ‘‘ 
(سنن نسائی ،حضرت موسیٰ(علیہ السلام) کا طریقہ نماز کا بیان حدیث نمبر۱۶۳۲)

‌‌‌‌‌     हज़रत अनस बिन मालिक रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिस रात मुझे मेराज हुई मैं मूसा अलैहिस्सलाम के पास सुर्ख टीले के पास आया, और वह खड़े अपनी क़ब्र में नमाज़ पढ़ रहे थे,

    यूं ही मेराज की शब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम की इमामत फरमाई और आसमानों पर दिगर अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम से मुलाक़ात हुई जो जिंदा होने की रौशन दलील हैं जैसा की हदीस शरीफ में है’’

وعن أبي هريرة قال : قال رسول الله صلى الله عليه و سلم :لقد رأيتني في الحجر وقريش تسألني عن مسراي فسألتني عن أشياء من بيت المقدس لم أثبتها فكربت كربا ما كربت مثله فرفعه الله لي أنظر إليه ما يسألوني عن شيء إلا أنبأتهم وقد رأيتني في جماعة من الأنبياء فإذا موسى قائم يصلي . فإذا رجل ضرب جعد كأنه أزد شنوءة وإذا عيسى قائم يصلي أقرب الناس به شبها عروة بن مسعود الثقفي فإذا إبراهيم قائم يصلي أشبه الناس به صاحبكم - يعني نفسه - فحانت الصلاة فأممتهم فلما فرغت من الصلاة قال لي قائل : يا محمد هذا مالك خازن النار فسلم عليه فالتفت إليه فبدأني بالسلام( رواه مسلم مشکوٰۃ المصابیح معراج کا بیان ص ۵۲۹۔۵۳۰۔حدیث نمبر ۵۷۹۰)

    हज़रत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मैंने अपने को हतीम में देखा कुरैश मुझसे मेरे सफरे मेराज के मुतअल्लिक़ सवालात कर रहे थे तो उन्होंने मुझसे बैतूल मुक़द्दस की ऐसी चीजों के मुतअल्लिक़ सवालात किए जो मुझे याद ना रही थी तो मैं इतना गमगीन हुआ जितना कभी ना हुआ था तो अल्लाह ने मेरे सामने उसे कर दिया मैं उसे देख रहा था वह किसी चीज के मुतअल्लिक़ मुझसे ना पूछते थे मगर मैं उन्हें बता देता था और मैंने अपने को नबीयों की जमाअत में देखा तो मूसा अलैहिस्सलाम खड़े हुए नमाज़ पढ़ रहे थे वह दरमियाना क़द घुंघरीले बाल वाले हैं गोया वह शनूअह के लोगों में से हैं और ईसा अलैहिस्सलाम खड़े नमाज़ पढ़ रहे थे उनसे क़रीबन हमशक्ल उरवा बिन मसऊद बिन सक़फी हैं और इब्राहीम लैहिस्सलाम खड़े नमाज़ पढ़ रहे थे सब में ज़्यादा उनकी मुशाबेह तुम्हारे साहिब यानी मैं हूं फिर नमाज़ का वक़्त हो गया तो मैं ने उनकी इमामत की फिर जब नमाज़ से मैं फारिग़ हो गया तो मुझसे किसी कहने वाले ने कहा ए मोहम्मद यह आग के खजांची मालिक हैं उन्हें सलाम कीजिए मैंने उनकी तरफ तवज्जह की तो उन्होंने मुझे सलाम करने से इबतिदा की। 

       यानी हम मेराज में दौराने सफर अंबिया ए किराम की क़ब्रों पर गुज़रे तो मूसा अलैहिस्सलाम को देखा कि वह अपनी क़ब्र में खड़े नमाज़ पढ़ रहे हैं, हुजूर अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गुज़रते हुए उनकी क़ब्रों में उन्हें देखा फिर बैतूल मुक़द्दस में जहां सब ने हुजूर के पीछे नमाज़ पढ़ी, फिर आसमानों में अपने मक़ामात पर फिर वापसी मेराज में अपने मक़ामात पर यहां पहली मुलाक़ात का ज़िक्र है, मालूम हुआ कि अंबिया ए किराम अपनी क़ब्रों में नमाज़ पढ़ते हैं वह जिंदा है मगर यह नमाज़ तकलीफी  नहीं लज़्ज़त व फरहत  की है। (मिरातुलमनाजीह पाठ ७ पेज १५ )

इरशाद ए बारी ए तआला है’’
(’’وَ مَاۤ اَرْسَلْنٰكَ اِلَّا رَحْمَةً لِّلْعٰلَمِیْنَ‘‘)

     और हमने तुम्हें ना भेजा मगर रहमत सारे जहान के लिए(सूरेअँबिया१०७)

सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू अन्हू तहरीर फरमाते हैं कि

(’’قال عز مجدہ وَ مَا اَرْسَلْنٰكَ اِلَّا رَحْمَةً لِّلْعٰلَمِیْنَ‘‘)

   और ए महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमने तुझे ना भेजा मगर रहमत सारे जहान के लिए। 
   आलमे मा सिवा ए  अल्लाह को कहते हैं जिसमें अंबिया व मलाइका सब दाखिल हैं तो ला जर्म यानी लाज़मी तौर पर हुजूरपुर नूर, सैय्यदुल मुर्सलीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन सब पर रहमत व नेअमत ए रब्बुल अरबाब हुए, और वह सब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सरकारे आली मदार से बहरा मंद व फैज़ियाब, इसी लिए औलिया ए कामिलीन व उलमा ए आमिलीन तसरीहें फरमाते हैं कि अज़्ल से अब्द तक, अर्ज़ व समा में, उला व आखिरत में, दीन व दुनिया में, रूह व जिस्म में, छोटी या बड़ी, बहुत या थोड़ी, नेअमत व दौलत किसी को मिली या अब मिलती है या आइंदा मिलेगी सब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह ए जहांपनाह से बटी और बटती है और हमेशा बटेगी। (फ़तावा रजविया पाठ २० पेज १४१)

   मालूम हुआ कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम औव्वल से आखिर तक सबके लिए रहमत हैं तो फिर यह भी मानना पड़ेगा कि जब तक आलम है हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाहयात हैं क्योंकि जो मर कर मिट्टी में मिल जाएगा माअज़ल्लाह  वह रहमत कैसे दे सकता है यानी यह आयत भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयात पर रौशन दलील हैइरशाद ए रब्बानी है

(’’ وَ لَااَنْ تَنْكِحُوْا اَزْوَاجَهٗ مِنْۢ بَعْدِهٖٓ  اَبَدًا اِنَّ ذٰلِكُمْ كَانَ عِنْدَ اللّٰهِ عَظِیْمًا‘‘)

       और ना यह कि उनके बाद कभी उनकी बीवीयों से निकाह करो बेशक यह अल्लाह के नज़दीक बड़ी सख्त बात है(सूरे अह़ज़ाब ५३)

    यह आयत भी हयात ए मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर रौशन दलील है क्योंकि इंतक़ाल के बाद बीवी निकाह से बाहर हो जाती है और बाद इद्दत निकाह दुरुस्त हो जाता है मगर यहां मना है, क्योंकि ज़िंदों की बीवी से शादी हराम है
(’’قال اللہ تعا لیٰ والمحصنت من النساء ‘‘)

       तो मानना पड़ेगा कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अभी बा हयात हैं और अज़वाजे मुतह्हरात बाद विसाल हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के निकाह में ही हैं, बाज़ लोगों ने इस आयत से यह मतलब निकाला है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियां मोमिनों की मां हैं  इसलिए निकाह हराम है हालांकि यह गलत है क्योंकि ऐहतरामन मां कहा गया है ना कि अहकामन और अगर अहकामन मां ही माना मुराद होता तो बाद तलाक़ हजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवीयों से निकाह जायज़ ना होता बल्कि हमेशा हमेश के लिए ही हराम होता क्योंकि बाप की मुतल्लक़ा यानी मां से निकाह हमेशा के लिए हराम हो जाता है मगर ऐसा नहीं है बल्कि बाद तलाक़ अज़वाजे मुतहरात से निकाह जायज़ ह क्योंकि बाद तलाक़ औरत निकाह से निकल जाती हैइरशाद ए रब्बानी है। 

(’’ یٰٓاَیُّهَا النَّبِیُّ قُلْ لِّاَزْوَاجِكَ اِنْ كُنْتُنَّ تُرِدْنَ الْحَیٰوةَ الدُّنْیَا وَ زِیْنَتَهَا فَتَعَالَیْنَ اُمَتِّعْكُنَّ وَ اُسَرِّحْكُنَّ سَرَاحًا جَمِیْلًا(۲۸)وَ اِنْ كُنْتُنَّ تُرِدْنَ اللّٰهَ وَ رَسُوْلَهٗ وَ الدَّارَ الْاٰخِرَةَ فَاِنَّ اللّٰهَ اَعَدَّ لِلْمُحْسِنٰتِ مِنْكُنَّ اَجْرًا عَظِیْمًا‘‘)

    ऐ गैब बताने वाले (नबी) अपनी बीवियों से फरमा दो  अगर तुम दुनिया की जिंदगी और उसकी अराइश चाहती हो तो आओ मैं तुम्हें माल दूं और अच्छी तरह छोड़ दूं, और अगर तुम अल्लाह और उसके रसूल और आखिरत का घर चाहती हो तो बेशक अल्लाह ने तुम्हारी नेकी वालियों के लिए बड़ा अजर तैयार कर रखा है(सूरे अह़ज़ाब२८ /२९)

    इरशाद ए रब्बानी है
(’’وَ سْئَلْ مَنْ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ مِنْ رُّسُلِنَا اَجَعَلْنَا مِنْ دُوْنِ الرَّحْمٰنِ اٰلِهَةً یُّعْبَدُوْنَ‘‘)

    और उनसे पूछो जो हमने तुमसे पहले रसूल भेजे क्या हमने रहमान के सिवा कुछ और खुदा ठहराए जिनको पूजा हो(कनज़ुल ईमान सुरे ज़ुखरफ आयत नंबर४५ )

      हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हजरत ईसा अलैहिस्सलाम तक सारे अंबिया अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत से पहले तशरीफ लाए और अल्लाह तबारक व तआला अपने महबूब से फरमाता है ए महबूब उन तमाम अंबिया अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम से पूछो मतलब तमाम अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम बा हयात हैं जभी तो पूछने का हुक्म हो रहा है वरना मुर्दों से कौन पूछता यानी यह आयत भी दलील है कि अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम बा हयात हैं बस फर्क़ इतना है कि हम उन्हें देख नहीं सकते यानी हमारी आंखों में इतनी बसारत नहीं है। 

       हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार नईमी अलैहिर्रहमा तहरीर फरमाते हैं कि सारे नबी ज़िंदा हैं वह अपनी क़ब्रों में पाबंद नहीं,आलम की सैर कर सकते ज़िंदा मक़बूल बंदों से कलाम कर लेते हैं उनके सवालों का जवाब भी दे देते हैं क्योंकि यहां यह ना फरमाया गया की खत तार के जरिया उनसे पूछ लो ना यह कि उनकी क़ब्रों से जाकर पूछ लो ना नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन (अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम) के मज़ारात पर कभी गए, यही मतलब है कि ऐ प्यारे वह हज़रात तुम्हारे पास आते ही रहते हैं आप उनसे मिलते ही रहते हैं मेराज में वह आए हज्जे विदाअ में वह शरीक हुए आप उनसे कभी पूछ लें यह आयत हयात ए अंबिया के लिए ऐसी सरीह है जिसमें तावील की गुंजाइश नहीं, क्योंकि ना नबीयों की उम्मतों से पूछना मुराद है ना उनकी किताबों से क्योंकि उनकी उम्मतें फना या मुशरिक हो चुकी थी और उनकी किताबें या खत्म हो चुकी थी या मुहर्रफ, जिनमें कुफ्र व शिर्क भरा हुआ था(रसाइले नईमियां पेज ४५८)

  सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाह अन्ह फरमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और तमाम अंबिया ए किराम हयाते हक़ीक़ी दुनियावी रूहानी जिस्मानी से जिंदा हैं, अपनी मज़ारात ए तैय्यबा में नमाज़ें पढ़ते हैं रोज़ी दिए जाते हैं जहां चाहें तशरीफ ले जाते हैं ज़मीन व आसमान की सल्तनत में तशरीफ फरमाते हैं,रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं

(’’الانبیاء احیاء فی قبورھم یصلون‘‘)

      हज़रात अंबिया ए अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम अपनी मज़ारात में ज़िंदा हैं और नमाज़ अदा फरमाते हैं( शरहुस्सुदूर पेज़७८)

    रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं

(’’ان ﷲ حرم علی الارض ان تاکل اجساد الانبیاء فنبی اﷲ حی یرزق‘‘(سنن ابن ماجہ آخر کتاب الجنائز ایچ ایم سعید کمپنی کراچی ص۱۱۹)

    बेशक अल्लाह  ने हज़रात अंबिया ए अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम के अजसाद ए मुबारका का ज़मीन पर खाना हराम फरमा दिया है अल्लाह के नबी ज़िंदा हैं और रिज़्क़ दिए जाते हैं। 

    इमाम जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं

(’’اذن اللانبیاء ان یخرجوا من قبورھم و یتصرفوا فی ملکوت السمٰوٰت و الارض‘‘)

        हज़रात अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम के लिए मज़ारात से बाहर जाने और आसमान और ज़मीन में तशरीफ़ की इजाज़त होती है।(फतावा रज़विया पार्ट१४ पेज६८६)

   नेज़ फरमाते हैं
(’’وانما حیاۃ الانبیاء اعلٰی واکمل واتم من الجمیع لانھا للروح والجسد علی الدوام علی ماکان فی الدنیا‘‘)

     शुहदा की ज़िंदगी बहुत आला है ज़िंदगी और रिज़्क़ की यह किस्म उन लोगों को हासिल नहीं होती जो उनके हम मर्तबा नहीं और अंबिया की ज़िंदगी सबसे आला है इसलिए कि वह जिस्म व रुह दोनों के साथ हैं जैसा कि दुनिया में थी और हमेशा रहेगी। (फतावा रज़विया पार्ट९ पेज४३३)

      यही वजह है कि अंबिया ए किराम का तरका तक़्सीम नहीं किया जाता है क्योंकि तरका मरने के बाद तक़्सीम होता है ना कि ज़िंदो का जैसा की हदीस शरीफ में है

(’’ ‌‌‌‌‌‏عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، ‌‌‌‌‌‏أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، ‌‌‌‌‌‏قَالَ:‌‌‌‏ لَا يَقْتَسِمُ وَرَثَتِي دِينَارًا مَا تَرَكْتُ بَعْدَ نَفَقَةِ نِسَائِي وَمَئُونَةِ عَامِلِي فَهُوَ صَدَقَةٌ‘‘)

   हज़रत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहू अन्हू से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फरमाया मेरे वारिस मेरे बाद एक दिनार भी ना बाटें (मेरा तरका तक़्सीम ना करें) मैं जो छोड़ जाऊं उसमें से मेरे अमीलों की तनख्वाह और मेरी बीवियों का खर्च निकाल कर बाक़ी सब सदक़ा है,(सही बुखारी  नबी करीम  की वफात के बाद आपकी अज़वाजे मुतहरात के नुफ्क़ा का बयान हदीस नंबर ३०९६)

    मालूम हुआ कि अंबिया ए किराम ज़िंदा हैं और इसका सुबूत हदीस शरीफ से भी है जैसा कि मिशकात शरीफ में है
(’’عَنْ اَبِی دَرْدَاءِ  قَالَ قَا لَ رَسُولُ اللّٰہِ  ﷺ اِنَّ اللّٰہَ حَرَّمَ عَلَی الْاَرْضِ اَنْ تَأ کُلَ اَجْسَا دَالْاَنْبِیَآ  ئِ فَنَبِیُّ اللّٰہَ حَیٌّ یُرْ زَقُ‘‘(ابن ماجہ جلد اول صفحہ ۷۶، مشکوٰۃ  باب الجمعہ الفصل الثا لث صفحہ ۱۲۱)

     हज़रत अबू दरदा रज़ि अल्लाहू अन्हू से रिवायत है कि नबी ए करीम  ने फरमाया कि खुदा ए तआला ने ज़मीन पर अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम के जिस्मों को खाना हराम फरमा दिया लिहाज़ा अल्लाह के नबी जिंदा हैं और रोज़ी दिए जाते हैं। 

     हज़रत शैख अब्दुल हक़ देहलवी रहमतुल्लाह अलैह हदीस के तहत फरमाते हैं

پیغمبر خدا زندہ است بحقیقت حیات دنیاوی(اشعۃ اللمعات جلد اول صفحہ ۵۷۶)

       यानी खुदा ए तआला के पैगंबर दुनियावी ज़िंदगी की हक़ीक़त के साथ ज़िंदा हैं। 

      नेज़ मिशकात सफा १२०, पर है

’’عَنْ اَوْسِ بْنِ اَوْسٍ قَالَ قَا لَ رَسُولُ اللّٰہِ  ﷺ اِنَّ اللّٰہَ حَرَّمَ عَلَی الْاَرْضِ اَجْسَا دَالْاَنْبِیَا ء‘‘(نسا ئی جلد اول صفحہ ۲۰۴ ،مشکوٰۃ  باب الجمعہ الفصل الثا نی صفحہ ۱۲۰)

      हजरते अवस रज़ि अल्लाहू अन्हू से रिवायत है की नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि खुदा ए तआला ने ज़मीन पर अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम के जिस्मों को खाना हराम फरमा दिया। 
      हज़रत मुल्ला अली क़ारी रहमतुल्लाही अलैह इस हदीस के तहत फरमाते हैं कि

(’’ان الانبیاء فی قبو رھم احیاء‘‘)

     यानी अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम अपनी क़ब्रों में ज़िंदा हैं और रिज़्क़ दिए जाते हैं(मिर्कात पार्ठ २ पेज़ २०९)

       हज़रत शेख अब्दुल हक़ मोहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह इस हदीस के तहत फरमारते हैं

کہ حیات  انبیا ء متفق علیہ است ہیچ کس را دروےخلاف نیست حیات جسمانی دنیاوی حقیقی نہ حیات معنوی روحانی چناںکہ شہدا ئے راست

      यानी अंबिया ए किराम ज़िंदा हैं, और उनकी ज़िंदगी सब मानते आए हैं, किसी को इसमें एख्तिलाफ नहीं है,उनकी ज़िंदगी जिस्मानी हक़िक़ी दुनियावी है शहीदों की तरह सिर्फ मानवी और रूहानी नहीं है (लमआत पार्ट १ पेज़ ४७५)

      हज़रत शेख हसन बिन अम्मार शरन बिलाली रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर किताब नूरूल एज़ा की शरह मिराकिल फलाह में तहरीर फरमाते हैं

(’’ومما ھو مقرر عند المحققین انہ صلی اللہ تعالیٰ علیہ وسلم حی یر زق ممتع بجمیع الملاذ والعباد ات غیر انہ حجب عن ابصار القا 
صرین عن شریف المقات ‘‘)

     यानी यह बात अरबाबे तहक़ीक़ ए उलमा के नज़दीक साबित है कि सरकार ए अक़द्दस सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम (दुनियावी ज़िंदगी के साथ) ज़िंदा हैं उन पर रोज़ी पेश की जाती है, तमाम लज़्ज़त वाली चीज़ों का मज़ा और इबादतों से सुरूर पाते हैं लेकिन जो लोगों की बुलंद दर्जों तक पहुंचने से क़ासिर हैं उनकी निगाहों से ओझल हैं । 
      मआ तहतावी मिसरी ४४७ और नसीम अल रियाज़ शरह शिफा क़ाज़ी अयाज़ जिल्द १ सफा १७४, में है

(’’الانبیاء علیہم السلام اھیاء فی قبورھم حیاۃ حقیقۃ ‘‘)

       यानी अंबिया ए किराम हक़ीक़ी ज़िंदगी के साथ अपनी क़ब्रों में ज़िंदा हैं। 

     और मीरक़ात शरहे मिशकात में है

(’’انہ صلی اللہ تعا لی علیہ وسلم حی یر زق ویستمد منہ المدد المطلق ‘‘)

       यानी बेशक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम बा हयात हैं और उन्हें रोज़ी पेश की जाती है और उनसे हर क़िस्म की मदद तलब की जाती है(मिरक़ात शर्हे मिशक़ात पार्ट ५ पेज़ ६३२)

     और हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहलवी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी मकतूब में फरमाया कि उलमा ए उम्मत में इतने एख्तिलाफात व कसरत मज़ाहिब के बावजूद किसी शख्स को इस मसला में कोई एख्तिलाफ नहीं है कि आँ हज़रत सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम हयात (दुनयवी) की हक़ीक़त के साथ क़ायम और बाक़ी हैं, हयात ए नबवी में मजाज़ की आमेज़श और तावील का वहम नहीं है और उम्मत के आमाल पर हाज़िर व नाज़िर हैं, नेज़ तालिबान ए हक़ीक़त के लिए और उन लोगों के लिए कि आँ हज़रत सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की जानिब तवज्जह रखते हैं हुजूर उनको फैज़ बख्शने वाले और उनकी मुरब्बी हैं,(बहवाला अनवारुल हदीस पेज़ २९२/२९३)

     और मुफ्ती अहमद यार खान नईमी अलैहिर्रमा तहरीर फरमाते हैं कि हम पहले अर्ज़ कर चुके हैं कि नबी के जिस्म को ना मिट्टी खा सकती है ना कोई जानवर, याकूब अलैहिस्सलाम का फरमाना मैं डरता हूं कि यूसुफ को भेड़िया खा जाएगा ज़ाहिर है कि वहां भेड़िए से मुराद खुद उनके भाई हैं वरना पैगंबर के जिस्म को मिट्टी नहीं खाती, ज़ाहिर है कि यह फरमान भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम का ही है और नबी से मुराद जिन्स ए नबी हैं। 

      इमाम बहक़इ  फरमाते हैं कि यह हज़रात बाद वफात मुख्तलिफ वक़्तों में मुख्तलिफ जगह तशरीफ़ फरमा होते हैं यह अक़लन नक़लन हर तरह साबित है

(१) रब तआला फरमाता है 
("وَسْـَٔلْ مَنْ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِکَ مِنْ رُّسُلِنَا")

     यानी ऐ महबूब अपने से पहले अंबिया अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम से यह मसला पूछो मालूम हुआ कि गुज़श्ता अंबिया हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के ज़माने में ज़िंदा हैं कि आप उनसे बात चीत व सवाल जवाब भी कर सकते हैं

(२) और फरमाया है
("وَ لَا اَنْ تَنْکِحُوْا اَزْوٰجَہٗ مِنۡۢ بَعْدِہٖٓ  اَبَدًا") 

       हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की बीवीयों से उनकी वफात के बाद कभी निकाह ना करो इस आयत ने बताया कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की वफात के बाद उनकी बीवियां बदस्तूर उनके निकाह में रहती हैं बेवा नहीं होती वरना अज़वाजहू ना फरमाया जाता, नेज़ उनसे निकाह की हुरमत माँ होने की वजह से नहीं वह बीवीयां एहतराम में मायं हैं ना कि अहकाम में वरना उनकी मेरास उम्मत को मिलती, उनकी औलाद के निकाह हराम होता है यह आयत हयातुन्नबी की खुली दलील है। 

(३) शब ए मेराज हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने मूसा अलैहिस्सलाम को उनकी क़ब्र में नमाज़ पढ़ते देखा जब सरकार सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम बैतूल मुक़द्दस पहुंचे तो उन्हें और सारे पैगंबरों को वहां नमाज़ का मुंतज़िर पाया और फिर जब आसमानों पर तशरीफ ले गए तो चौथे आसमान पर मूसा अलैहिस्सलाम को और मुख्तलिफ आसमानों पर दीगर अंबिया अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम को अपना मुंतज़िर देखा, इन कुरानी आयात और अहादीस से पता चला कि अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम बाद वफात ज़िंदा होते हैं बल्कि उन पर ज़िंदों के बाज़ अहकाम जारी होते हैं। 

(४) उनकी बीवीयां दूसरा निकाह नहीं कर सकती। 
(५) उनकी मैरास तक़्सीम नहीं होती। 
(६)हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम पर हर नमाज़ी सलाम अर्ज़ करता है। 
(७) हम कलमे में पढ़ते हैं
(محمد رسول اللہ ﷺ)

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं। 
   अगर वह ज़िंदा ना होते तो कहा जाता कि अल्लाह के रसूल थे, गर्ज़ की इस हदीस की ताईद क़ुरानी आयात से भी है और दिगर अक़ली व नक़ली दलाईल से भी, खयाल रहे की आयते करीमा

 ("اِنَّکَ مَیِّتٌ وَّاِنَّہُمْ مَّیِّتُوْنَ") 

     इस हदीस के खिलाफ नहीं क्योंकि वहां मौत से मुराद हिस्सी मौत है जिस पर बाज़ अहकाम मौत के जारी हो जाते हैं, जैसे गुस्ल, कफन, दफन, वगैरा यहां ज़िंदगी से हक़ीक़ी ज़िंदगी मुराद है, नेज़ वहां आयात में मौत से मुराद है रूह का जिस्म से अलाहिदा हो जाना और यहां ज़िंदगी से मुराद है रूह का जिस्म वगैरा में तसर्रुफ करना, जैसे हमारी सैलानी रूह नींद में जिस्म से निकलकर जिस्म को जिंदा रखती हैं यूं ही उनकी मक़ामी रुह बवक़्त वफात जिस्म से निकलकर भी ज़िंदगी बाक़ी रखती है, लिहाज़ा ना तो आयात मुतआरीज़ है और ना हदीस व कुरान में कुछ तआरुज़ इसलिए इस आयत में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के लिए मैयत अलग बोला गया और दूसरे के लिए मैइतूना अलाहिदा अगर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की वफात भी दूसरों की तरह होती तो यूँ फरमाया जाता

("اِنَّكَ وَ اِنَّہُمْ مَّیِّتُوْنَ")

       सूफीआ फरमाते हैं कि हुजूर अनवर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम रूह हैं सारा आलम जिस्म है, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम जड़ हैं सारा आलम दरख्त है, अगर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम फना हो गए होते तो आलम भी खत्म था, जैसे दरख्त के सब्ज़ शाखें जड़ की ज़िंदगी का पता देती है और जिस्म की हिस व हरकत रूह का पता देती है ऐसे आलम का क़याम व बक़ा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की हयात का पता दे रहा है, देखो जिस्म का सूखा हुआ अज़ू सड़ता गलता नहीं की अभी रूह से वाबस्ता है अगरचे बेकार हो गया है, ऐसे ही हम गुनाहगारों पर आज़ाब ए इलाही नहीं आता कि अगरचे हम बेकार हैं मगर दामन ए मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम पाक से वाबस्ता हैं, रब तआला फरमाता है

(’’اللہُ لِیُعَذِّ بَہُمْ وَاَنْتَ فِیْہِمْ‘‘)

    अगर हुजूर अनवर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम हम में ना रहे होते तो हम पर आज़ाब आ जाना चाहिए था हमारी बदकारियों के सबब

(८) हज़रत सुलेमान की मुतअल्लिक़ रब फरमाता है

 ("مَا دَلَّہُمْ عَلٰی مَوْتِہٖ اِلَّا دَآبَّۃُ الْاَرْضِ تَاْکُلُ مِنْسَاَتَہٗ) 

       यानी हज़रत सुलैमान बादे वफ़ात आसा पर टेक लगाए खड़े रहे बहुत अरसा के बाद दीमक ने लाठी खाई तब आपका जिस्म ज़मीन पर आया इसी अरसा में ना जिस्म बिगड़ा ना दीमक ने खाया

(९) वह शोहदा जो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के गुलामाने गुलाम हैं जब उन पर फिदा हो कर ज़िंदा जावेद हो गए तो खुद हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की ज़िंदगी कैसी अहम है, रिज़्क़ से मुराद रिज़्क़ हिस्सी है यानी जन्नती मेवे उनकी खिदमत में पेश होते हैं जिस से वह बहरा मंद रहते हैं, जब उनके गुलाम यानी शोहदा की रूहें जन्नत में पहुंचती है वहां के फल खाती हैं और जब मरियम को दुनिया में जन्नत के फल दिए गए और उन्होंने खाए (कुरान मजीद)तो अंबिया ए किराम खुसूसन सैय्यदुल अंबिया सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के रिज़्क़ का क्या पूछना, असहाबए कहफ और उनका कुत्ता सदहा साल से सो रहे हैं उन्हें गैबी रिज़्क़ भी बराबर पहुंच रहा है सूरज उन पर धूप नहीं डालता, दिसंबर, जनवरी, और जून व जुलाई उन पर सर्दी गर्मी नहीं पहुंचाते, हज़रात अंबिया ए अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम बाद वफात उनसे आला हुसन वाली ज़िंदगी रखते हैं

(१०) हजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम पर बाद वफात अपनी अज़वाज का नानो नुफ्क़ा वाजिब है जैसे ज़िंदगी शरीफ में था चुनांचे बुखारी वगैरा कुतुबे अहादीस में है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि ना हम किसी के वारिस ना कोई हमारा वारिस, हमारे बाद हमारी अज़वाज के नुफ्क़ा और उम्माल की तनख्वाह से जो बचे 
वह सदक़ा है। 

(११) हज़रत आईशा रज़ि अल्लाहू अन्हा फरमाती हैं कि जब तक मेरे हुजरे में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम और अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहू अन्हू दफन रहे मैं बेहिजाब वहां जाती थी मगर जब से जनाब उमर रज़ि अल्लाहू अन्हू दफन हुए मैं बेहिजाब जाते उमर रज़ि अल्लाहू अन्हू से शर्माती हूं, अगर वह हज़रात ज़िंदा नहीं तो यह शर्म किससे है,

(१२) बाज़ औलिया के अजसाम सदहा बरस के बाद अब भी दुरुस्त देखे जाते हैं, अगर वह बिल्कुल मुर्दे हैं तो जिस्म गलता क्यों नहीं, हयाते नबी पर यह १२ दलाईल हैं,( मिरातुल मनाजीह पार्ट २ पेज ३१९ ता ३२१)

    नेज़ दर्से कुरान में तहरीर फरमाते हैं कि हर ज़बान का यह क़ायदा मुकर्रर है कि ज़िंदों के लिए कुछ और अल्फाज़ इस्तेमाल करते हैं, मुर्दों के लिए कुछ और चुनांचे उर्दू में मुर्दों के लिए (था)फारसी में (बूवद) अरबी में(काना)अंग्रेज़ी में (वाज़) वगैरा अल्फाज़ इस्तेमाल होते हैं, और ज़िंदों के लिए उर्दू में( है )फारसी में (हस्त), अंग्रेजी में (इज़) वगैरा हैं, चुनांचे ज़िंदे की हिकायत यूं करते हैं फलां बड़ा अच्छा है आलिम है सखी है बादशाह या वजीर है, लेकिन बाद मौत कहा जाता है कि वह अच्छा था, सखी था, मुर्दे को कोई है नहीं बोलता और है बोलने वाले को झूठा कहा जाता है गर्ज़ कि ज़िंदा की हिकायत है और था मुर्दा की जब बात समझ लिया तो गौर करो कि इस्लाम का कलमा शरीफ है
(لا الہ الا اللہ محمد رسو ل اللہﷺ)

      यानी अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं। 

      हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की हयाते ज़ाहिरी में भी सहाबा ए किराम रिज़वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ने यही कलमा पढ़ा अज़ान और नमाज़ में भी इसकी गवाही दी गई और वफात शरीफ से अब तक कलमा यही रहा और क़यामत तक यही रहेगा अगर हयातुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम दुरुस्त ना हो आप सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की मौत का अकीदा रखा जाए तो तमाम मुसलमानों का कलमा नमाज़ अज़ान सब गलत हो गए बल्कि अब कलमा यूं होना चाहिए था

(کان محمد رسول اللہ  ﷺ)

     मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम अल्लाह के रसूल थे, हज़रत इंसान मुसलमान पीछे होता है अज़ान और नमाज़ पीछे अदा करता है हयातुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम पहले मान लेता है मसला हयातुन्ननबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ईमान और नमाज़ वगैरा की असल है(रसाइले नईमिया पेज़४५६) 

    खुलास ए  कलाम यह है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम व दिगर अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम अपने-अपने क़ब्रों में ज़िंदा हैं रिज़्क़ दिए जाते हैं जहां चाहते हैं आते जाते हैं दूसरों की मदद करते हैं और कलाम भी करते हैं, और जो कहे मर कर मिट्टी में मिल गए वह गुमराह बद दीन है अल्लाह तआला अपने हबीब साहिब ए लौलाक सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के सदक़ ए तूफेल समझने की तौफीक अता फरमाए। 

آمین یا رب العلمین بجاہ سید المرسلین  ﷺ   

अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
गायडीह पोस्ट चमरुपुर जिला बलरमपुर यू पी 
१३ शाबानुल मुअज़्ज़म १४४२ हि
२७ मार्च २०२० ई
 दिन शनिवार 

हिंदी ट्रांसलेट 
 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी 
(दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
१७ रबिउस सानी १४४३ हि
२३ नवंबर २०२१ ई
दिन मंगलवार 

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