क्या माइक पर नमाज़ होगी जबकि मुकब्बिर भी हों

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 क्या माइक पर नमाज़ होगी जबकि मुकब्बिर भी हों


 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की ज़ैद (इमाम) ने जुमा के दिन तक़रीर व खुतबा माइक में की फिर ज़ैद नमाज़ के लिए मुसल्ला पर गया तो माइक्रोफोन का बटन बंद किया और नमाज़ के लिए नियत बांध ली पर नमाज़ के दौरान लोगों को पता चला कि माइक चालू है बंद नहीं हुआ है और माइक पर नमाज़ पढ़ी जा रही है बाद नमाज़ जुमा बकर (मुक़तदी) ने कहा कि नमाज़ फिर से दोहराई जाए क्योंकि माइक पर नमाज़ पढ़ी गई है और नमाज़ नहीं हुई है, ज़ैद ने कहा कि नमाज़ हो गई क्योंकि मैंने बटन बंद किया और यह ख्याल किया कि माइक बंद हो गया है फिर मैंने नियत बांधी है, वाज़ेह रहे कि मुकब्बिर को तकबीर कहने के लिए लगाया गया और मुकब्बिर ने तकबीर कही भी है, अब सवाल यह है कि ज़ैद का क़ौल दुरुस्त है या बकर का यानी ऐसी सूरत में नमाज़ हुई कि नहीं ? कुरआन और अहादीस की रौशनी में जवाब देकर इंदल्लाह माजूर हों

 साईल  हज़रत क़ारी ज़ुबैर अहमद क़ादरी (मुंबई)

 जवाब सूरते मसऊला में नमाज़ हो गई क्योंकि माइक पर जो लोग नमाज़ के क़ाएल नहीं हैं उसकी वजह यह बयान करते हैं कि माइक से जो आवाज़ निकलती है वह बिऐनिही इमाम की आवाज़ नहीं बल्कि माइक की आवाज़ है और माइक की आवाज़ पर रुकू सुजूद करना यानी माइक कि इत्तिबा करना मुफसिदे नमाज़ है कि माइक दाखिले नमाज़ नहीं बल्कि खारिजे नमाज़ है और खारिजे नमाज़ का लुक़्मा लेना मुफसदात में से है लेकिन यहां वह सूरत नहीं पाई गई है बल्कि मुक़तदियों ने मुकब्बिर की इत्तिबा की हैं ना कि माइक की और मुक़्तदी की इत्तिबा इमाम की इत्तिबा है अगर्चे माइक की आवाज़ भी मुक़्तदियों तक पहुंच रही हो और मुक़्तदी माइक की आवाज़ मुकम्मल सुन भी रहे हों फिर भी नमाज़ में कोई कमी ना आएगी जैसा की अल्लामा सदरुश्शरिया अलैहिर्रहमां फरमाते हैं 

 अपने मुक़्तदी के सिवा दुसरे का लुक़्मा लेना भी मुफसिदे नमाज़ है अलबत्ता अगर उसके बताते वक़्त उसे खुद याद आ गया उसके बताने से नहीं यानी अगर वह ना बताता जब भी उसे याद आ जाता उसके बताने में कुछ दखल नहीं तो उसका पढ़ना मुफसिद नहीं (बहारे शरीअत हिस्सा ३ मुफसिदाते नमाज़)

 यूहीं माइक की आवाज़ का मामला है कि अगर्चे आवाज़ मुक़्तदी सुन रहे हों लेकिन इत्तिबा मुकब्बिर की कर रहे थे माइक की नहीं इसलिए नमाज़ हो गई ज़ैद का कहना दुरुस्त है बकर पर लाज़िम है की तौबा करे और गलत मसअला बताने की ज़ुर्रत ना करे वरना लानत का मुस्तहिक़ होगा जैसा की हदीस शरीफ में है 

 من افتیٰ بغیر علم لعنتہ ملائکۃ السماء والارض

 जो बगैर इल्म के फतवा दे उस पर आसमान व ज़मीन के फरिश्तों की लानत हो (कंज़ुल उम्माल / बहवाला इब्ने असाकर हदीस न.२९०१८ / बहवाला रज़विया)

والله تعالی اعلم بالصواب


अज़ क़लम 

 फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)



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