सलातुत्तस्बीह जमाअत से पढ़ना कैसा है ?

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 सलातुत्तस्बीह जमाअत से पढ़ना कैसा है ?


सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की नमाज़े सलातुत्तस्बीह पढ़ना कैसा है ? नीज़ जमाअत से पढ़ना कैसा है ? क्या यह बिदअत है ? अगर है तो कौन सी बिदअत है ?

साईल : मेहरबान अली ६० फिट रोड गली नंबर ११ छतरपुर पहाड़ी अंबेडकर कॉलोनी नई दिल्ली इंडिया

जवाब : नमाज़े सलातुत्तस्बीह पढ़ना जायज़ और सवाब का काम है और उसे पढ़ने का हुक्म नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दिया है

जैसा की हदीस शरीफ में इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रवायत है की नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से फरमाया ऐ चाचा जान अब्बास क्या मैं आपको कुछ आता ना करूं ? क्या मैं आपको कोई खबर ना दूं ? क्या मैं आपको १० खसलतें आता ना करूं ? की जब आप उन पर अमल करें तो अल्लाह पाक आपके अगले पिछले, क़दीम व जदीद, सहवन किए गए या अमदन, छोटे बड़े पोशीदा और ज़ाहीर तमाम गुनाह माफ फरमा दे, वह यह कि आप चार रकात नमाज़ पढ़े़ं हर रकात में सूरह फातिहा और कोई दूसरी सूरत पढ़ें, जब आप पहली रकात में क़िरात से फारिग हो जाएं और अभी क़याम में हों तो आप 15 मर्तबा

سُبْحَانَ اللّٰہِ وَالْحَمْدُلِلّٰہِ وَلَا اِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ وَاللّٰہُ اَکْبَرْ

सुब्हानल्लाहि वल हम्दु लिल्लाहि वला इलाहा इल्लल्लाहू वल्लाहू अकबर

पढ़ें, फिर आप रुकू करें और रुकू में यही तस्बीह 10 मर्तबा पढ़ें, फिर रुकू से सर उठाएं और 10 मर्तबा यही तस्बीह पढ़ें, फिर सजदा करें और सजदा में दस मर्तबा यही तस्बीह पढ़ें, फिर सजदा से सर उठाएं और 10 मर्तबा यही तस्बीह पढ़ें, फिर सजदा करें और दस मर्तबा यही तस्बीह पढ़ें और फिर सजदा से सर उठाएं और दस मर्तबा यही तस्बीह पढ़ें, इस तरह हर रकात में 75 मर्तबा कलिमात होंगे, आप यह अमल चार रकातों में दोहराए अगर आप हर रोज़ उसे पढ़ सके तो पढ़ें, अगर ऐसे ना हो सके तो फिर हर जुम्मा (यानी हफ्ता में एक बार) पढ़ें, अगर ऐसे ना कर सके तो फिर साल में एक मर्तबा पढ़े, अगर ऐसे भी ना कर सके तो फिर अपनी जिंदगी में एक बार ही पढ़ लें,(रवाह अबू दाऊद व इब्न माजा बैहक़ी, मिश्कात १३२८)

सलातुत्तस्बीह नफ़ल है और नफ़ल नमाज़ तदाई के तौर पर यानी तीन मुक़्तदियों से ज़ाएद की जमाअत से पढ़ना मकरुहे तंज़ीही है, चूंकी जमाअत से पढ़ना अहादीस से साबित नही है तो यह ज़रूर बिदअत है मगर बिदअते सैया नहीं बल्कि बिदअते मुबाहा है,

         والله تعالی اعلم بالصواب


अज़ क़लम 

 फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)



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