रिसाला अप्रैल फूल मनाना कैसा है ?

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بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ
لَعْنَتُ اللّٰہِ عَلَی الْکٰذِ بِیْنَ
(झूटो पर अल्लाह की लानत) (कंज़ुलईमान)
 





अप्रैल फूल मनाना कैसा है ? 





लेखक
खलीफ़ए,हुज़ूर ,अर्शदे ,मिल्लत 
मौलाना ,ताज ,मोहम्मद  क़ादिरी ,वाहिदी ,उतरौलवी 
साहब ,क़िबला ,दामत ,बरकातुहुमुल आलिया 
गायडीह पोस्ट चमरुपुर जिला बलराम पुर यू पी 

हिंदी ट्रांसलेट एवं नाशिर 
मौलाना मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी
दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश 
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(नज़रे सानी)

नाशिर ए मसलके आला हज़रत, हज़रत अल्लामा व मौलाना मोहम्मद गज़ाली मिस्बाही साहब क़िबला दामत बरकातहुमुल क़ुदसिय्या उस्ताद दारुल उलूम अहले सुन्नत हशमतुर्रज़ा उतरौला बलरामपुर
حامدا اومصلیاً
      आज इस दौरे पुर फितन में मुस्लिम नौजवान यहूदो नसारा के तहज़ीब व तमद्दुन पर फरेफता नज़र आ रहे हैं और उनके तमाम अफआल को अपनाने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं, हालांकि उनको मालूम नहीं कि उनके तहज़ीब व तमद्दुन को अपनाने की वजह से हम कितनी हिलाकतों से दो-चार होने वाले हैं और हम पर किस क़दर तबाहीयां मुसल्लत होने वाली हैं और उनके अफआले क़बीहा को अपनाने की वजह से हम किस तरह गुनाहों के दलदल में धंस्ते हुए चले जा रहे हैं उनके उन्हीं अफआले क़बीहा में से जिनको हम अपना चुके हैं "अप्रैल फूल" भी है,लिहाज़ा बिरादराने इस्लाम को अप्रैल फूल की हलाकतों से बचाने के लिए हज़रत मौलाना ताज मोहम्मद वाहिदी ज़ीदा मजद्दहू ने तमाम मसरूफियात के बावजूद अंथक कोशिश के ज़रीआ इस रिसाला को तरतीब दिया,अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ है कि मौला करीम उनकी इस काविश को मक़बूले बारगाह फरमाए और मिल्लते बैज़ा की हिनाबंदी की मज़ीद तो फीक़ इनायत फरमाए

آمین بجاہ سید المرسلین علیہ و علیٰ اٰلہ وافضل الصلوۃ والتسلیم

मोहम्मद गज़ाली मिस्बाही उफी अन्हु
४ जमादिस्सानी १४३८ हिजरी
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(निगाहे अव्वलिन)

       आज से तक़रीबन पंद्रह (१५) सौ साल पहले जहालत इस क़दर फैली हुई थी कि झूट, दगा बाज़ी, अय्याशी वगैरा आम हो चुकी थी, झूट बोलने को बहादुरी और होशियारी का काम समझा जाता था, लेकिन जब पैग़ंबरे इस्लाम शिक्मे आमिना रज़ि अल्लाहू तआला अन्हा से दुनिया में तशरीफ लाए और चौदह (१४) साल की उम्र में सदाक़त का ऐसा झंडा लहराया की मक्का के लोग आपको अमीन व सादिक़ कहने लगे और आप के नक्शे क़दम पर चलने लगे फिर जब ऐलाने नबूवत का हुक्म हुआ तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें अल्लाह का पैगाम सुनाया और फरमाया कि झूट गुनाहे कबीरा है झूट बोलने से बचो, कि झूटों पर अल्लाह की लानत है,जैसा कि अल्लाह तआला ने क़ुरआने मुकद्दस बे इरशाद फरमाया है

لَعْنَتُ اللّٰہِ عِلَی الْکٰذِبِیْنَ
यानी झूटो पर अल्लाह की लानत 

   नीज़ हदीस शरीफ में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि 

اِذَا کَذَبَ الْعَبْدُ تَبَا عَدَعَنْہُ الْمَلَکُ مِیْلاً مِنْ نَّتَنِ مَا جَائَ بِہٖ

    यानी जब बंदा झूट बोलता है तो उसकी बदबू से (जो उसके मुंह से आती है) फरिश्ता एक (१) मील दूर हो जाता है(मिशकात ४१३ )

     मगर अफसोस सद अफसोस कि आज हम नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कलमा पढ़ते हैं और अपने आप को गुलाम-ए-मुस्तफा  कहते हैं उस के बावजूद झूट पर झूट बोलते हैं खुसूसन "अप्रैल फूल" मनाने में और यह बला इस क़दर फैल चुकी है कि जैसे मई के महीना में किसी चीज़ को आग लगी हो और बुझने का नाम ना लेती हो ठीक इसी तरह यह बला बढ़ती जा रही है और लोग "गुनाह बे लज़्ज़त" में मुब्तिला होते जा रहे हैं,हालांकि यहूदियों की मुशाबहत रखना ईमान की हिलाकत का सबब है जैसा कि हज़रत इब्ने उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  ने फरमाया

مَنْ تَشَبَّہَ بِقَوْ مٍ فَھُوَ مِنْھُمْ

यानी जो किसी क़ौम की मुशाबहत करेगा तो वह उन्हीं में से होगा(मिशकात ३७५)

      मिरातुल मनाजीह में है कि गर्क़े फिरऔन के दिन सारे फिरऔनी डूब गए मगर फिरऔनीयों का बहरूपिया बच गया तो मूसा अलैहिस्सलाम ने बारगाहे इलाही में अर्ज़ की मौला यह क्यों बच गया फरमाया उसने तुम्हारा रूप भरा हुआ था(मिरातुल मनाजीह जिल्द ६ सफा ११५)

      मालूम हुआ कि अच्छों की मुशाबिहत फायदेमंद और बख्शीश का ज़रिआ है और बुरों की मुशाबिहत हलाकत का सबब है लिहाज़ा इस "गुनाह बे लज़्ज़त" से दूर रहना चाहिए अल्लाह तआला हर बंद ए मोमिन व मोमिना को समझने की तौफीक़ अता फरमाए,

آمین بجاہ سید المرسلین علیہ الصلوۃ والتسلیم

   अबू सईद खुदरी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो शख्स खिलाफे शरअ देखे तो उसे अपने हाथ से रोक दे और अगर हाथ से रोकने की कुदरत ना हो तो ज़बान से मना करे और अगर ज़बान से भी मना करने की कुदरत ना हो तो दिल से बुरा जाने और यह सबसे कमज़ोर ईमान है,(मुस्लिम जिल्द १ सफा ५१/ बाबुल अम्र बिल मारुफ/) (मिशकात ४३६ फस्ल १)

   हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुना कि लोग जब कोई खिलाफे शरअ देखें और उसको ना मिटाएं तो अन क़रीब खुदा ए तआला उनको अपने अज़ाब में मुब्तिला करेगा,(इब्ने माजा जिल्द दोम सफा २८९/ब)(मिशकात ४३६)

  इन्हीं अहादीसे मुबारका पर अमल करते हुए मैं ने क़लम को संभाला हालांकि मैं इसका अहल नहीं था लेकिन कुछ लोगों की फरमाइश ने लिखने पर मजबूर कर दिया बिल आखिर पीरे तरीक़त रहबरे राहे शरीअत शहज़ाजद ए हुज़ूर ताहिरे मिल्लत सैय्यदी मुर्शिदी हुज़ूर सैय्यद सुहेल मियां साहब क़िबला मद्दज़िल्लहुन्नूरानी की दुआओं का सहारा लेकर लिखना शुरु कर दिया यहां तक कि रिसाला हाज़ा मुकम्मल हुआ

       मैं शुक्र गुज़ार हूं उस्ताज़ुल मुकर्रम व मोहतरम सूफी ए बा सफा आली वक़ार मास्टर रहमतुल्लाह साहब क़िबला आसवी का जिन्होंने बचपन से फक़ीर की परवरिश कर के इस लाएक़ बनाया और अपनी दुआओं से नवाज़ते रहे,और शुक्र गुज़ार हूं हज़रत अल्लामा मौलाना मोहम्मद गज़ाली साहब क़िबला मिस्बाही का की हज़रत ने रिसाला हाज़ा की नज़र सानी कर के और कलिमात खैर तहरीर कर के इसे ज़ीनत बख्शी,और शुक्र गुज़ार हूं हज़रत अल्लामा मौलाना अलहाज मुफ्ती गुलाम रज़ा साहब क़िबला रज़वी का जिन्होंने अपने बेहतरीन मशवरों से नवाज़ा,और शुक्र गुज़ार हूं अज़ीज़म हाफिज़ गुलाम शेर रज़ा सल्लमहू का जिन्होंने कुरआन की आयते मुक़द्दसा को हासिल करने में मेरी भर पूर मदद की,और शुक्रगुजार हूं मुखैय्यिरे क़ौम  ओ मिल्लत आली जनाब सेठ साबिर अली साहब का जो हर मौक़ा पर तआवून फरमाते रहे

    आखिर में अहले इल्म हज़रात से गुज़ारिश है कि रिसाला हाज़ा में कोई गलती नज़र आए तो हमें इत्तिला देकर शुक्रिया का मौक़ा दें, 

     मौला करीम की बारगाह में दुआ है कि जिन्होंने मेरी मदद की या रिसाला हाज़ा में किसी क़िस्म का तआवून किया अल्लाह तआला उन सभी हज़रात के इल्म व उमर में बरकतें अता फरमाए और अजरे अज़ीम व रिज़्क़ हलाल अता फरमा

آمین یا رب العلمین بجاہ حبیبہ الکریم علیہ الصلوۃ والتسلیم

फक़ीर ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी उतरौलवी ग
५ रबीउल अव्वल १४३८ हिजरी 
मुताबिक़ ५ दिसंबर २०१६ बरोज़ सोमवार 
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 بسم اللہ الرحمن الرحیم
اَلْحَمْدُ الِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ وَالصَّلٰوۃُ وَالسَّلَامُ عَلٰی  حَبِیْبِہِ سَیِّدِ الْاَنْبِیَائِ وَالْمُرْسَلِیْنَ وَعَلَی اٰلِہِ الطَّیِّبِیْنَ الطَّا ہِرِیْنَ وَاَصْحَابِہِ الْاَکْرَمِیْنَ الْاَفْضَلِیْنَ الْاَ جْمَعِیْنَ ۔
 اما بعد!
      आज कल मुसलमानों की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रही है फैशन परस्ती और अगियार की तक़लीद में नत नई बुराइयां मुस्लिम मुआशरे में फैलती जा रही हैं उन्हीं बुराइयों में से एक अहम बुराई "अप्रैल फूल" भी है कि यह एक खालिस मगरिबी और गैर इस्लामी तरीक़ा है,अप्रैल फूल यानी हर साल अप्रैल के महीने की पहली तारीख को एक दूसरे को बेवकूफ बनाया जाता है झूट बोल कर मौज मस्ती की जाती है, फरेब और दगा से काम लिया जाता है, वअदा के खिलाफ किया जाता है मसलन अपने दोस्त को फोन कर के बताना कि आप के घर में आग लग गई है या आपके बेटे की तबीयत खराब है, या आप फलां मक़ाम पर आकर मिलें मैं आप का इंतज़ार कर रहा हूं, हालांकि ना तो किसी की तबीयत खराब होती है, और ना ही और कोई हादसा होता है, और ना ही जिस जगह बुलाया जाता है वहां मुलाक़ात होती है, बल्कि बाद में बताया जाता है कि "अप्रैल फूल" मना कर मैं ने आप से मज़ाक़ किया है जबकि अल्लाह तआला जल्ला शानहु का फरमाने आली शान है

وَالَّذِیْنَ یُؤْذُوْنَ الْمُؤْمِنِیْنَ وَالْمُؤْمِنٰتِ بِغَیْرِ مَا اکْتَسَبُوْا فَقَدِاحْتَمَلُوْا بُھْتَا نًا وَّ اِثْمًا مُّبِیْنًا

    और जो ईमान वाले मर्दों और औरतों को बे किए सताते हैं उन्होंने बुहतान और खुला गुनाह अपने सर लिया,(पारा २२,सुरह अहज़ाब ५८)

    और मिशकात में हज़रत सुफियान बिन असद हज़रमी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है फरमाते हैं मैं ने रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते सुना की बुरी खयानत यह है कि तू अपने भाई से कोई बात करे जिस में वह तुझे सच्चा समझता हो और तू उस में झूटा हो (मिशकत १२४)

   और बाज़ जगहों पर नौजवान ऐसा भी करते हैं कि पांच, दस रुपए के सिक्के में fevi queqe (गोंद) लगाकर सड़क पर चिपका देते हैं और जब कोई उसे उठाना चाहता है तो उसका मज़ाक़ उड़ाते हैं या फिर दस,बीस के कागज़ वाले नोट में बारीक धागा बांध कर सड़क पर रख देते हैं और जब कोई उसे उठाना चाहता है तो धागे को अपनी जानिब खींच कर मज़ाक़ उड़ाते हैं गोया यह एक क़िस्म का लह्व लअब (खेल कूद) है हालांकि लह्व लअब के मुतअल्लिक़ हम सब का परवर दिगार फरमाता है

وَمِنَ النَّاسِ مَنْ یَّشْتَرِیْ لَہْوَ الْحَدِیْثِ لِیُضِلَّ عَنْ سَبِیْلِ اللّٰہِ بِغَیْرِ عِلْمٍ٭ وَّیَتَّخِذَ ھَا ھُزُوًا٭ اُوْلٰٓئِکَ لَھُمْ عَذَابٌ مُّھِیْنٌ

  और कुछ लोग खेल की बातें खरीदते हैं कि अल्लाह की राह से बहका दें बे समझे और उसे हंसी बना लें उनके लिए ज़िल्लत का अज़ाब है, (पारा २१ सूरह लुक़मान ६)

 हदीस शरीफ में है

وعن بهز بن حكيم عن أبيه عن جده قا ل قال رسول الله صلى الله عليه وسلم ويل لمن يحدث فيكذب ليضحك به القوم ويل له ويل له . رواه أحمد والترمذي وأبو داود والدارمي

      हज़रत बहज़ इब्न हकीम अपने वालिद (हकीम बिन मआविया) से और वह बहज़ के दादा (हज़रत मआविया बिन ओबदह) से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया अफसोस उस शख्स पर जो बात करे तो झूट बोले ताकि उस के ज़रिआ लोगों को हंसाए, अफसोस उस शख्स पर अफसोस उस शख्स पर,(सुनन अबू दाऊद हदीस नंबर ४९९०)(मिशकातुल मसाबीह हदीस नंबर ४७३७)

وعن أبي هريرة قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم إن العبد ليقول الكلمة لا يقولها إلا ليضحك به الناس يهوي بها أبعد ما بين السماء والأرض وإنه ليزل عن لسانه أشد مما يزل عن قدمه . رواه البيهقي في شعب الإيمان

      और हज़रत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया हक़ीक़त यह है कि जब बंदा एक बात कहता है और सिर्फ इस लिए कहता है कि उसके ज़रिआ लोगों को हंसा ए तो वह इस बात की वजह से (दोज़ख में) जा गिरता है और इतनी दूर जा गिरता है जो ज़मीन व आसमान के दरमियानी फासला से भी ज़्यादा होती है और यह भी हक़ीक़त है कि बंदा अपने क़दमों के ज़रिआ फिसलने से ज़्यादा अपनी ज़बान के ज़रिआ फिसलता है,(मिशकातुल मसाबीह हदीस नंबर ४७३८)

حَدَّثَنَا أَسْوَدُ بْنُ عَامِرٍ قَالَ أَخْبَرَنَا أَبُو إِسْرَائِيلَ عَنْ عَطِيَّةَ عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ يَرْفَعُهُ قَالَ إِنَّ الرَّجُلَ لَيَتَكَلَّمُ بِالْكَلِمَةِ لَا يُرِيدُ بِهَا بَأْسًا إِلَّا لِيُضْحِكَ بِهَا الْقَوْمَ فَإِنَّهُ لَيَقَعُ مِنْهَا أَبْعَدَ مِنْ السَّمَاءِ

    हज़रत अबू सईद खुदरी से मरवी है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया बाज़ औक़ात इंसान कोई बात मुंह से निकालता है, उसका मक़सद सिर्फ लोगों को हंसाना होता है, लेकिन वह कलमा उसे आसमान से भी दूर ले जा कर फेंकता है(मुसनद अहमद हदीस नंबर १०९०३)

      इन मज़कूरा आयाते करीमा व अहादीसे नबविय्या से मालूम हुआ कि झूट बोलना गुनाहे कबीरा व हलाकत का सबब है लिहाज़ा मुसलमानों को चाहिए कि इस से दूर रहें मगर अफसोस कि पहले यूरप, अमरीका और दिगर ममालिक में लोग "अप्रैल फूल" बड़ी धूमधाम से मनाते थे और एक दूसरे को बे 9वकूफ बना कर लुत्फ अंदोज़ होते थे मगर अब हमारे मुल्क के बड़े-बड़े शहरों में भी "अप्रैल फूल" मनाने का रिवाज शुरू हुआ बाद में मोबाइल की कसरत की वजह से देहातों में भी यह बला नाज़िल होने लगी, और कुफ्फार व मुशरिकीन की तरह अब मुसलमानों में भी "अप्रैल फूल" मनाने का रिवाज बढ़ता जा रहा है मॉडर्न घराने के मुसलमान भी झूट बोल कर एक दूसरे को बेवकूफ बना कर खूब मौज मस्ती करते हैं और ज़ोरदार क़हक़हा लगाते हैं,

क्या हो गया सरकार गुलामों को तुम्हारे
अगियार के फैशन की नाहूसत नहीं जाती

     जब मोबाइल आम नहीं हुआ था तो यह बला "अप्रैल फूल" मनाना भी मुसलमानों में आम नहीं हुई थी बाज़ लोग इस मअसीयत में मुब्तला थे और कॉलेज में पढ़ने वाले मुस्लिम लड़के और लड़कियां ही "अप्रैल फूल" मनाने में दिलचस्पी रखते थे मगर अब सूरते हाल बिल्कुल मुख्तलिफ है मोबाइल क्या आया मुसीबत आ गई मोबाइल की कसरत और इसका इस्तेमाल आम होने की वजह से अब "अप्रैल फूल" मनाने का रिवाज भी मुसलमानों में आम होता जा रहा है, मोबाइल के ज़रिआ मुसलमान बड़ी आसानी के साथ इस "गुनाह बे लज़्ज़त" में मुब्तिला हो रहे हैं


अप्रैल फूल क्यों मनाया जाता है ?

    "अप्रैल फूल" यहूदी खास तौर से मनाते हैं इस लिए कि अप्रैल कि पहली तारीख को यहूदियों ने अल्लाह के जलीलुल क़द्र पैगंबर हज़रत ईसा अलैहिलस्सलाम को सताया था और तरह तरह से आप का मज़ाक़ उड़ाया था,सदियां गुज़र जाने के बावजूद भी यहूदी एक दूसरे को बेवकूफ बना कर और मज़ाक़ उड़ा कर इस वाक़िय की याद ताज़ा करते हैं,(मोबाइल फोन के ज़रूरी मसाइल सफा ९३)

अप्रैल फूल मनाना कैसा है ?

    "अप्रैल फूल" ख्वाह मोबाइल फोन के ज़रिआ मनाया जाए या बगैर मोबाइल के सरासर नाजायज़ व हराम है और अगर नियत हो की अल्लाह के नबी हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का मज़ाक़ उड़ाया गया था इस लिए हम कर रहे हैं तो यह खुला हुआ कुफ्र है,मगर बंद ए मोमिन पर बिला तहक़ीक़ कुफ़र का फतवा नही दिया जा सकता अलबत्ता हराम गुनाहे कबीर जरूर है 

     याद रहे कि "अप्रैल फूल" मनाने में छै (६) क़िस्म के गुनाह सादिर होते हैं,(१) अल्लाह के जलीलुल क़द्र पैगंबर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की शान में तौहीन करना,(२) यहूदो नसारा की पैरवी करना,(३) झूट बोलना,(४) मज़ाक़ उड़ाना,(५) वादा के खिलाफ करना,(६) मुसलमान को ऐज़ा पहुंचाना

    अब हम मज़कूरा बाला वईदों को कुरआन और अहादीस की रौशनी में बयान करते हैं बगौर मुलाहिज़ा फरमाएं,
 
अंबिया ए किराम की शान में तौहीन करना कैसा है?

      बरादराने इस्लाम "अप्रैल फूल" बनाना गोया अल्लाह के जलीलुल क़द्र पैगंबर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का मज़ाक़ उड़ाना है और आप की शान में गुस्ताखी करना है, हालांकि किसी भी पैगंबर की शान में अदना सी गुस्ताखी करना कुफ्र,जैसा कि फिक़्ह की मशहूर व मअरूफ व मोअतमद "किताब फतावा अलमगीरी" में है कि जो अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम के बाल शरीफ को बलवा तस्गीर के सेगे के साथ कह दे तो वह काफिर हो जाएगा और अगर यह नियत ना हो तो कुफ़र ना होगा जैसा कि पहले बताया चुका हूँ 

    ब्यान किया जाता है कि जब यहूदियों ने यह तय किया कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को फांसी दे दी जाए और उन्होंने फांसी का तख्ता भी खड़ा कर लिया तो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम रूपोश हो गए उन के हवारीन में "यहूज़ा" नामी एक मुनाफिक़ था उसने निशानदही की यहूदियों ने उस मकान को जिस में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम थे घेर लिया यहूज़ा हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के साथ था, हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हमेशा हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के साथ रहते थे वह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को आसमान पर ले कर चले गए और यहूज़ा की शक्ल हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के मिस्ल कर दी गई यहूदी उसको पकड़ ले गए और फांसी दे दी (नुज़हतुल क़ारी जिल्द सोम सफा ५४८)

    हज़राते मोहतरम ! मज़कूरा वाक़िया से मालूम हुआ कि अल्लाह के जलीलुल क़द्र पैगंबर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की शान में गुस्ताखी करने के सबब अल्लाह ने यहूज़ा को उन्हीं यहूदियों से हलाक करा दिया और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को बाहिफाज़त आसमान पर उठा लिया

      और नुज़हतुल मजालिस है की हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम बच्चों के साथ जब कभी बैठते तो उन्हें घर में पोशीदा चीज़ों को बता दिया करते लड़के अपने वालिदैन से उन अशिया का मुतालबा करते की फुलां फुलां चीज़ें कहां हैं वालिदैन उन से कहते तुझे कैसे खबर हुई वह कहते हमें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने खबर दी है लोगों ने अपने लड़कों को हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के पास आने से रोका जब बज़िद हुए तो उन तमाम को एक मकान में बंद कर दिया हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम आए और लोगों से लड़कों की बाबत पूछा और फरमाया कि उस मकान में क्या है लोग कहने लगे उस घर में तो सिवा ए बंदरों और खीन्ज़ीर के कुछ नहीं आपने फरमाया अच्छा फिर ऐसा ही होगा, लोगों ने मकान का दरवाज़ा खोला तो तमाम लड़के बंदर और सुअर बन चुके थे, अल इयाज़ बिल्लाह (नुज़हतुल मजालिस मुतरजिम जिल्द दोम सफा ७४४)

      मोहतरम हज़रात आपने देखा कि सैय्यदना ईसा अलैहिस्सलाम का वह मक़ाम है कि आप के पास बच्चों को आने से रोका गया और आप से झूठ बोला गया तो आप की बद्दुआ से अल्लाह ने उन्हें बंदर और सूअर बना दिया,
 استغفر اللہ
       लिहाज़ा अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम की शान में गुस्ताखी करने से बचो वरना ईमान से महरूम हो जाओगे, इसी तरह कुरआन मुक़द्दस में कई आयाते करीमा हैं जिन से यह ज़ाहिर है कि अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम की शान में तौहीन करने वाले काफिर हो गए और उनका ईमान बर्बाद हो गया जैसा की तफसीरे खज़ाइनुल इरफान में है कि गज़व ए तबूक में जाते हुए मुनाफिक़ीन के तीन नफरों में से दो रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निस्बत तमसखुरन कहते थे कि उनका (नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का) खयाल है कि रूम पर गालिब आ जाएंगे कितना बईद खयाल है और एक नफर बोलता तो ना था मगर उन बातों को सुन कर हंसता था हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको तलब फरमां कर इरशाद फरमाया कि तुम ऐसा ऐसा कह रहे थे उन्होंने कहा कि हम रास्ता काटने के लिए हंसी खेल के तौर पर दिल्लगी की बातें कर रहे थे, इस 
पर आयते करीमा नाज़िल हुई

قُلْ اَبِا للّٰہِ وَاٰیٰتِہٖ وَرَسُوْلِہٖ کُنْتُمْ تَسْتَھْزِؤُوْن٭  لَا تَعْتَذِرُوْ قَدْکَفَرْتُمْ بَعْدَ اِیْمَانُکُمْ

तुम फरमाओ क्या तुम अल्लाह और उसकी आयतों और उसके रसूल से हंसते हंसते हो, बहाने ना बनाओ तुम काफिर हो चुके मुसलमान होकर (पारा १० सुरह तौबा ६५/६६)

     और दूसरे मक़ाम पर इरशादे बारी ए तआला है

وَالَّذِیْنَ یُؤْذُوْنَ رَسُوْلَ اللّٰہِ لَھُمْ عَذابٌ اَلِیْمْ

    और जो अल्लाह के रसूल को ऐज़ा देते हैं उनके लिए दर्द नाक आज़ाब है(पारा १० सुरह तौबा ६१)

     और फरमाता है

اِنَّ الَّذِیْنَ یُؤْ ذُوْنَ اللّٰہَ وَرَسُوْ لَہٗ لَعْنَھُمُ اللّٰہُ فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَۃِ وَاَعَدَّ لَھُمْ عَذَا بًا مُّھِیْنًا

   बेशक जो ऐज़ा देते हैं अल्लाह और उसके रसूल को उन पर अल्लाह की लानत है दुनिया और आखिरत में और अल्लाह ने उनके लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है,(पारा २२ सुरह अहज़ाब ५७)

       हज़रात ए मोहतरम बाज़ लोग इस तरह के गुनाह करते रहते हैं और उन्हें दुनियावी तकलीफ नहीं पहुंचती फिर उनके दिल में यह खयाल आता है कि मैं जो करता हूं यही बेहतर है अगर यह बेहतर ना होता तो कोई ना कोई परेशानी ज़रूर आती, हालांकि ऐसा नहीं है कि जब कोई तकलीफ ना पहुंचे तो यह गुमान किया जाए कि यह काम बेहतर है इसलिए कि अल्लाह तबारक व तआला बाज़ को दुनिया में सज़ा देता है और बाज़ को आखिरत के आज़ाब में मुब्तिला करेगा,जैसा कि कुरआन मजीद व फुरक़ान हमीद में है कि फिरऔनियों ने मूसा अलैहिस्सलाम की तकज़ीब की तो अल्लाह ने उन्हें ढील दी फिर अजाबे आखिरत में मुब्तिला फरमाया चुनांचे फरमाता है

وَکُذِّبَ مُوْسیٰ فَاَمْلَیْتُ لِلْکٰفِرِیْنَ ثُمَّ اَخَذْ تُھُمْ فَکَیْفَ کَا نَ نَکِیْرِ

    और मूसा अलैहिस्सलाम की तकज़ीब हुई तो मैंने काफिरों को ढील दी फिर उन्हें पकड़ा तो कैसा हुआ मेरा अज़ाब (कंज़ुल ईमान पारा १७ सूरह हज ४४)

         लिहाज़ा अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम की शान में गुस्ताखी करने से परहेज़ करें बल्कि उनकी ताज़ीम व तौक़ीर करो कि यही ज़रिअ ए निजात है जैसा कि इरशाद ए बारी ए तआला है

وَاٰمَنْتُمْ بِرُسُلِی وَعَزَّرْتُمُوْ ھُمْ وَاَقَرَضْتُمُ اللّٰہَ قَرَضًا حَسَنًا لَّاُ کَفِّرَ نَّ عَنْکُمْ سَیِّاٰ تِکُمْ وَلَاُدْخِلَنَّکُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِھَا الْاَ نْھٰرُ

        और मेरे रसूलों पर ईमान लाओ और उनकी ताज़ीम करो और अल्लाह को क़र्ज़ ए हसना दो बेशक मैं तुम्हारे गुनाह उतार दूंगा और ज़रूर तुम्हें बागों में ले जाऊंगा जिनके नीचे नहरें रवां हैं(कंज़ुल इमान पारा ६ सूरह माएदा १२)

    और फरमाता है 

لِتُؤْمِنُوْا بِا للّٰہِ وَ رَسُوْلِہٖ وَتُعَزِّ رُوْہُ وَ تُوَقِّرُوْہُ ٭وَتُسَبِّحُوْ ہُ بُکْرَۃً وَّ اَصِیْلًا

    ए लोगों तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और रसूल की ताज़ीम व तौक़ीर करो और सुब्ह व शाम अल्लाह की पाकी बोलो, (कंज़ुल ईमान पारा २६ सूरह फतह ९)

         ऐ प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के शैदाईयो यह तसव्वूर कभी हरगिज़ ना करना कि हम तो नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कलमा पढ़ते हैं हमें ईसा अलैहिस्सलाम से क्या तअल्लुक़ वह तो ईसाइयों के पैगंबर हैं बल्कि यह अक़ीदा रखना कि सब अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम अदब व ताज़ीम में बराबर हैं और हमें सब पर ईमान रखना लाज़िम है फिर जो ऐसा किया यानी अंबिया ए किराम से मोहब्बत रखा और उनकी ताज़ीम की तो बेशक वह अजरे अज़ीम का मुस्तहिक़ है क्योंकि फरमाने हक ताआला है

وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا بِا للّٰہِ وَرُسُلِہٖ وَلَمْ یُفَرَّقُوْا بَیْنَ اَحَدٍمِّنْھُمْ اُوْلٰٓئِکَ سَوْفَ یُؤْ تِیْہِمْ اُجُوْ رَھُمْ ٭وَکَا نَ اللّٰہُ غَفُوًا رَّحِیْمًا

और वह जो अल्लाह और उसके सब रसूलों पर ईमान लाए और उनमें से किसी पर ईमान में फर्क़ ना किया उन्हें अनक़रीब अल्लाह उनके सवाब देगा और अल्लाह बख्शने वाला महरबान है(कंज़ुल ईमान पारा ६ निसा १५२)

यहूदियों की पैरवी करना कैसा है ?

    "अप्रैल फूल" मनाना यहूदियों की पैरवी करना है हालांकि यहूदियों की पैरवी नाजायज़ व हराम है और उनकी पैरवी करना हमारे लिए हिलाकत का सबब हैजैसा कि हज़रत इब्ने मसऊद से रिवायत है की नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में एक शख्स आया अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस शख्स के बारे में क्या फरमाते हैं जो किसी क़ौम से मोहब्बत करे और उनसे मिला ना हो ? तो नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि वह उसके साथ होगा जिस से मोहब्बत करे(मिशकात सफा ४२५/बाबुल फील्लाह व मिनल्लाह फस्ल अव्वल)

       हज़रत अनस रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि एक शख्स ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़यामत कब आएगी ? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया अफसोस तुझ पर तूने उसके लिए क्या तैयारी की है ? उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मैं ने कोई तैयारी नहीं की बजुज़ इस के कि मैं अल्लाह व रसूल से मोहब्बत करता हूं तो हुज़ूर ने फरमाया

اَنْتَ مَعَ مَنْ اَحْبَبْتَ

यानी तू उसके साथ होगा जिससे तुझे मोहब्बत है(मिशकात सफा ४२६)

       और हज़रत इब्ने मसऊद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया

اَلْمَرْئُ مَعَ مَنْ اَحْبَّ

 यानी इंसान उसी के साथ होगा जिस से वह मोहब्बत करे(ऐज़न फस्ल सानी)

    और हज़रत उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया

مَنْ تَشَبَّہَ بِقَوْ مٍ فَھُوَ مِنْھُمْ

यानी जो किसी क़ौम से मोशाबहत करेगा तो वह उन्हीं में से होगा(रवाह अबू दाऊद)( मिशकात सफा ३७५/किताबुल लिबास फस्ल सानी)

    इन अहादीसे तैय्यबा से साबित हुआ कि जब कोई बंदा किसी बंदे से या क़ौम से मोहब्बत करे (उनकी पैरवी करे) तो उसका हश्र उसी के साथ होगा अगर्चे उनसे मिला ना हो, उन्हें देखा ना हो

   और आला हज़रत मुजद्दीदे दीनों मिल्लत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू फरमाते हैं कि आदमी जिस हाल पर मरता है उसी हाल पर उठता है  अगर रोज़ ए क़यामत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मजूस की सूरत (या यहूदियों की पैरवी) देख कर निगाह फरमाने से कराहत फरमाई तो यक़ीन जान की तेरा ठिकाना कहीं ना रहा, मुसलमान की पनाह,अमान, निजात, रस्तगारी जो कुछ है उनकी नजरे रहमत है में है अल्लाह की पनाह उस बुरी घड़ी से कि वह नज़र फरमाते कराहत लाएं
والعیاذ باللہ ارحم الراحمین
(फतावा रज़विया जिल्द २२ सफा ६४८/दावते इस्लामी)

सब ने सफे महशर में ललकार दिया हमको
ऐ बे कसों   के आक़ा   अब तेरी  दुहाई है

   और शायर कहता है 
ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम
ना   इधर  के रहे ना  उधर  के रहे

     लिहाज़ा इन खुराफातों से दूर रहो और यहूदों नसरा व मुशरिकीन की पैरवी करने के बजाए उनकी मुखालिफत करोजैसा कि की अहादीसे तैय्यबा में वारिद है

(۱)‏‏‏‏‏‏ عَنِ ابْنِ عُمَرَ ‏‏‏‏‏‏عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:‏‏‏‏ خَالِفُوا الْمُشْرِكِينَ، ‏‏‏‏‏‏وَفِّرُوا اللِّحَى وَأَحْفُوا الشَّوَارِبَ(صحیح بخاری حدیث نمبر۵۸۹۲)(السنن الکبریٰ جلد اول صفحہ؍ ۱۵۱)

        हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया तुम मुशरिकीन के  खिलाफ करो दाढ़ी छोड़ दो (एक मुश्त तक) और मोछें कतरवाओ

(۲)عَنْ عُمَرَ بْنِ مُحَمَّدٍ حَدَّثَنَا نَافِعٌ عَنْ ابْنِ عُمَرَ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ خَالِفُوا الْمُشْرِکِينَ أَحْفُوا الشَّوَارِبَ وَأَوْفُوا اللِّحَی

  हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि मुशरिकों की मुखालिफत किया करो मोछें कतरवा कर और दाढ़ी को बढ़ा कर(सहीह मुस्लिम हदीस नंबर ६०२)

(۳) عَبْدَ اللَّهِ بْنَ عَبَّاسٍ يَقُولُ:‏‏‏‏ حِينَ صَامَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَوْمَ عَاشُورَاءَ وَأَمَرَنَا بِصِيَامِهِ، ‏‏‏‏‏‏قَالُوا:‏‏‏‏ يَا رَسُولَ اللَّهِ، ‏‏‏‏‏‏إِنَّهُ يَوْمٌ تُعَظِّمُهُ الْيَهُودُ وَالنَّصَارَى. فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏ فَإِذَا كَانَ الْعَامُ الْمُقْبِلُ صُمْنَا يَوْمَ التَّاسِعِ

     अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा कहते हैं कि जिस वक़्त रसूलुल्लाह ने आशूरा के दिन का रोज़ा रखा और हमें भी उसके रोज़ा रखने का हुक्म फरमाया तो लोगों ने अर्ज़ किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह ऐसा दिन है कि यहूद व नसारा इस दिन की ताज़ीम करते हैं, यह सुन कर रसूलुल्लाह ने फरमाया अगले साल हम नौवीं (९) मोहर्रम का भी रोज़ा रखेंगे, (यहूदियों की मुखालिफत करेंगे)(सनन अबू दाऊद हदीस नंबर २४४५)(मिशकात सफा १७८)

(۴) حَدَّثَنَا حَجَّاجُ بْنُ مِنْهَالٍ ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا شُعْبَةُ ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ أَبِي إِسْحَاقَ ، ‏‏‏‏‏‏سَمِعْتُ عَمْرَو بْنَ مَيْمُونٍ ، ‏‏‏‏‏‏يَقُولُ:‏‏‏‏ شَهِدْتُ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ صَلَّى بِجَمْعٍ الصُّبْحَ، ‏‏‏‏‏‏ثُمَّ وَقَفَ فَقَالَ:‏‏‏‏ إِنَّ الْمُشْرِكِينَ كَانُوا لَا يُفِيضُونَ حَتَّى تَطْلُعَ الشَّمْسُ، ‏‏‏‏‏‏وَيَقُولُونَ:‏‏‏‏ أَشْرِقْ ثَبِيرُ، ‏‏‏‏‏‏وَأَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ خَالَفَهُمْ، ‏‏‏‏‏‏ثُمَّأَفَاضَ قَبْلَ أَنْ تَطْلُعَ الشَّمْسُ

    हमसे हज्जाज बिन मिन्हाल ने बयान किया, उन्होंने कहा कि हम से शअबा ने बयान किया, उनसे अबू इसहाक़ ने, उन्होंने उमर बिन मैमून को यह कहते सुना कि जब उमर बिन खत्ताब ने मुज़दल्फा में फज्र की नमाज़ पढ़ी तो मैं भी मौजूद था, नमाज़ के बाद आप ठहरे और फरमाया की मुशरिकीन (जाहिलियत में यहां से) सूरज निकलने से पहले नहीं जाते थे कहते थे ऐ सबीर (सुरज) तू चमक जा, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुशरिकों की मुखालिफत की और सूरज निकलने से पहले वहां से रवाना हो गए,(सहीह बुखारी हदीस नंबर १६८४)

       इन अहादीसे तैय्यबा से मालूम हुआ कि हमें हर फेल में यहूदियों मजूसीयों नसरानीयों मुशरिकों की पैरवी करने के बजाए उनकी मुखालिफत करनी चाहिए, अगर वह अप्रैल फूल मना कर क़ौम को धोका देते हैं तो हमें मनाने के बजाए रोकना चाहिए, मगर अफसोस सद अफसोस कि मुसलमान भी उनकी पैरवी में लग गए सहीह  फरमाया था पैग़ंबरे इस्लाम ने

لَتَتْبَعُنَّ سَنَنَ مَنْ كَانَ قَبْلَكُمْ شِبْرًا شِبْرًا، ‏‏‏‏‏‏وَذِرَاعًا بِذِرَاعٍ حَتَّى لَوْ دَخَلُوا جُحْرَ ضَبٍّ تَبِعْتُمُوهُمْ، ‏‏‏‏‏‏قُلْنَا:‏‏‏‏ يَا رَسُولَ اللَّهِ، ‏‏‏‏‏‏الْيَهُودُ، ‏‏‏‏‏‏وَالنَّصَارَى، ‏‏‏‏‏‏قَالَ: فَمَنْ

   तुम अपने से पहली उम्मतों की एक-एक बालिश्त और एक-एक गज़ में इत्तिबा करोगे, यहां तक कि अगर वह किसी गोह (छिपकली से मिलता-जुलता एक जानवर है उस) के सुराख में दाखिल हुए होंगे तो तुम उस में भी उनकी इत्तिबा करोगे, हमने (रावी हज़रत अबू सईद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने) पूछा या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या यहूद व नसारा मुराद है ? फरमाया फिर और कौन ? (यानी वही मुराद हैं)(सहीह बुखारी हदीस नंबर ७३२०)

    हज़राते मोहतरम इस हदीस पाक से बिल्कुल ज़ाहिर है कि यहूद व नसारा जो भी तरीक़ा एख्तियार करेंगे उनकी पैरवी में बाज़ मुसलमान भी वही तरीक़ा अपनाएंगे, ठीक वही हो रहा है कि यहूद व नसारा एक ज़माना से "अप्रैल फूल" मना रहे हैं तो यहूदो नसारा की तक़लीद करते हुए अब मुसलमान भी "अप्रैल फूल" बड़े ज़ोर व शोर से मनाने लगे हैं,आज से चौदह (१४) सै साल पहले सच फरमाया था नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कि अगर यहूदो नसारा गोह के सुराख में घुस जाएंगे तो तुम भी उनकी पैरवी करते हुए गोह के सुराख में घुस जाओगे आज का मुसलमान इस हदीस की अमली तफसीर और ज़ाहिरी नमूना बना हुआ है,अफसोस की बात यह है कि कुफ्फारो मुशरिकीन याहूदो नसारा मुसलमानों की सीरत व सूरत और तहज़ीब व मुआशिरत नहीं एख्तियार करते और हम मुसलमान हो कर याहूदो नसारा की सूरत व सीरत अपनाने के साथ-साथ उनकी तहज़ीब और मआशिरत भी एख्तियार करते चले जा रहे हैं यह ईमान की कमज़ोरी नहीं तो और क्या है?अल्लाह तआला अपने प्यारे हबीब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़ ए तुफैल हर मुसलमान मर्द व औरत को समझने की तौफीक़ अता फरमाए और हमें यहूदो नसारा की पैरवी से महफूज़ रखें और अगियार के फैशन से बचाए, आमीन सुम्मा आमीन

झूट बोलना कैसा है ?

        "अप्रैल फूल" मनाने में झूट भी बोलना पड़ता है जो कि आयाते कुरआनियां व अहादीसे नबविय्या के खिलाफ और नाजायज़ व हराम है,झूट ऐसी बुरी चीज़ कि हर मज़हब वाले इस की बुराई करते हैं तमाम अदियान में यह हराम है इस्लाम ने इस से बचने की बहुत ताकीद की है क़ुरआन व अहादीस में बहुत मवाक़े पर इसकी मज़म्मत  फरमाई गई है,जैसा कि क़ुरआन मुक़द्दस में है

لَعْنَتَ اللّٰہِ عَلَی الْکٰذِبِیْنَ

यानी झूटो पर अल्लाह की लानत,(कंज़ुल ईमान पारा ३ आले इमरान ६१)

     मगर अफसोस सद अफसोस कि लोग गुनाह बेलज़्ज़त में मुब्तिला होकर "अप्रैल फूल" के नशा में आकर इस क़दर झूट बोलते हैं कि कुरआन व अहादीस को भूल जाते हैं यही नहीं बल्कि झूटी क़समें भी खाने लगते हैं जब की झूटी क़सम खाने वालों के लिए दर्दनाक अज़ाब हैजैसा की क़ुरआने मुक़द्दस में है

اَلَمْ تَرَ اِلَی الَّذِیْنَ  تَوَ لَّوْا قَوْ مًا غَضِبَ اللّٰہُ عَلَیْہِمْ  ٭مَا ھُمْ مِّنْکُمْ وَلَا مِنْہُمْ وَ یَحْلِفُوْنَ عَلَی الْکَذِبِ وَھُمْ یَعْلَمُوْنَ ٭اَعَدَّ اللّٰہُ لَہُمْ عَذَا بًا شَدِیْداً

       क्या तुमने उन्हें ना देखा जो ऐसों के दोस्त हुए जिन पर अल्लाह का गज़ब है वह ना तुम में से ना उनमें से वह दानिस्तह झूटी क़समें खाते हैं अल्लाह ने उनके लिए सख्त अज़ाब तैयार कर रखा है(कंज़ुल इमान पारा २८ सूरह मुजादला १४/१५)

    और बाज़ लोग कुफरान नेअमत करते हैं और किज़्ब बयानी से काम लेते हैं कहते हैं कि तबीअत खराब है कभी कहते हैं कि घर में आग लग गई है तो कभी करते हैं कि इंतक़ाल हो गया जबकि कुछ नहीं होता है, ऐसों को तो अपने रब की नेअमत का चर्चा करना चाहिए,जैसा कि फरमाने खुदा वंदी है

وَاَمَّا بِنِعْمَۃِ رَبِّکَ فَحَدِّثْ

अपने रब की नेअमत का खूब चर्चा करो,(पारा ३० सुरह वद्दुहा ११)

   और दूसरी जगह फरमाता है
فَا ذْکُرُوْنِیٓ اَذْ کُرْ کُمْ وَاشْکُرُوْالِیْ وَلَا تَکْفُرُوْنِ

तू मेरी याद कर मैं तुम्हारा चर्चा करूंगा और मेरा हक़ मानों और मेरी ना शुक्री ना करो,(कंज़ुल इमान पारा २ सूरह बक़रा १५२)

लेकिन अफसोस सद अफसोस कि अपने रब की नेअमतों का चर्चा करने के बजाए रब पर झूट बांधते हैं जबकि फरमाने रब्बे ज़ुल जलाल है

وَمَنْ اَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرٰی عَلَی اللّٰہِ الْکَذِبَ

उस से बढ़कर ज़ालिम कौन है जो अल्लाह पर झूट बांधे(कंज़ुल इमान पारा २८ सूरह सफ ७)

   दूसरे मक़ाम पर फरमाता है

فَمَنْ اَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرٰی عَلَی اللّٰہِ کَذِباً

तो उस से बढ़कर ज़ालिम कौन है जो अल्लाह पर झूट बांधे(कंज़ुल ईमान पारा ११ सूरह यूनुस १७)

और फरमाता है

فَمَنِ افْتَرٰی عَلَی اللّٰہِ کَذِبَ مِنْ بَعْدیِ ذٰلِکَ  فَاُوْلٰٓئِکَ ھُمُ الظّٰلِمُوْن

तो उसके बाद जो अल्लाह पर झूट बांधे तो वही ज़ालिम हैं,(कंज़ुल ईमान पारा ४ सूरह आले इमरान ९४)

        प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुलामों झूट बोलने और उसकी आदत डालने और "अप्रैल फूल" मनाने से बाज़ आ जाओ वरना अज़ाबे इलाही में गिरफ्तार किए जाओगे,जैसा कि फरमाने वाहिदे क़ह्हार है

سَیَعْلَمُوْنَ غَدًمَّنِ الْکَذَّابُ الْاَشِرُ

    बहुत जल्द कल जान जाएंगे (यानी अज़ाब में मुब्तिला किए जाएंगे कि) कौन था बड़ा झूटा उतरूना(कंज़ुल ईमान पारा १७ सूरह हज ४४)

      अहादीसे मुबारका कि

(۱) عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ ، ‏‏‏‏‏‏عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ آيَةُ الْمُنَافِقِ ثَلَاثٌ، ‏‏‏‏‏‏إِذَا حَدَّثَ كَذَبَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا وَعَدَ أَخْلَفَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا اؤْتُمِنَ خَانَ

     हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, मुनाफिक़ की अलामत तीन है,(१) जब बात करे झूट बोले(२) जब वादा करे उसके खिलाफ करे(३) और जब उसको अमीन बनाया जाए तो खयानत करे,(सहीह बुखारी किताबुल ईमान बाब मुनाफिक़ की निशानियों का बयान हदीस नंबर ३३)

(۲) ‏‏‏‏عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو ، ‏‏‏‏‏‏أَنّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ أَرْبَعٌ مَنْ كُنَّ فِيهِ كَانَ مُنَافِقًا خَالِصًا، ‏‏‏‏‏‏وَمَنْ كَانَتْ فِيهِ خَصْلَةٌ مِنْهُنَّ كَانَتْ فِيهِ خَصْلَةٌ مِنَ النِّفَاقِ حَتَّى يَدَعَهَا إِذَا، ‏‏‏‏‏‏اؤْتُمِنَ خَانَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا حَدَّثَ كَذَبَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا عَاهَدَ غَدَرَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا خَاصَمَ فَجَرَ، ‏‏‏‏‏‏تَابَعَهُ شُعْبَةُ ، ‏‏‏‏‏‏عَنِ الْأَعْمَش

    हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत  हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि चार आदतें जिस किसी में हो तो वह खालिस मुनाफिक़ है और जिस किसी में इन चारों में से एक आदत हो तो वह भी निफाक़ ही है, जब तक उसे ना छोड़ दे, (वह यह हैं)(१) जब उसे अमीन बनाया जाए तो (अमानत में) खयानत करे,(२) और बात करते वक़्त झूट बोले,(३) और जब किसी से अहद करे तो उसे पूरा ना करे,(४) और जब किसी से लड़े तो गालियों पर उतर आए,(सहीह बुखारी किताबुल ईमान बाब मुनाफिक़ की  निशानियों का बयान हदीस नंबर ३४)

(۳) ‏‏‏‏‏‏عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا، ‏‏‏‏‏‏عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ أَرْبَعٌ مَنْ كُنَّ فِيهِ كَانَ مُنَافِقًا أَوْ كَانَتْ فِيهِ خَصْلَةٌ مِنْ أَرْبَعَةٍ كَانَتْ فِيهِ خَصْلَةٌ مِنَ النِّفَاقِ حَتَّى يَدَعَهَا:‏‏‏‏ إِذَا حَدَّثَ كَذَبَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا وَعَدَ أَخْلَفَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا عَاهَدَ غَدَرَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا خَاصَمَ فَجَر

   हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत 
है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया चार खसलतें ऐसी हैं कि जिस शख्स में भी वह होंगी, वह मुनाफिक़ होगा, या उन चार में से अगर एक खसलत भी उसमें है तो उसमें निफाक़ की एक खसलत है, यहां तक कि वह उसे छोड़ दे,(१) जब बोले तो झूट बोले(२) जब वादा करें तो पूरा ना करे,(३) जब मुआहीदा करे तो बे 
वफाई करे,(४) और जब झगड़े तो बद ज़ुबानी पर उतर आए(सहीह बुखारी हदीस नंबर २४५९)

(۴) عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏ أَرْبَعُ خِلَالٍ مَنْ كُنَّ فِيهِ كَنَّ مُنَافِقًا خَالِصًا مَنْ إِذَا حَدَّثَ كَذَبَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا وَعَدَ أَخْلَفَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا عَاهَدَ غَدَرَ، ‏‏‏‏‏‏وَإِذَا خَاصَمَ فَجَرَ، ‏‏‏‏‏‏وَمَنْ كَانَتْ فِيهِ خَصْلَةٌ مِنْهُنَّ كَانَتْ فِيهِ خَصْلَةٌ مِنَ النِّفَاقِ حَتَّى يَدَعَهَا

   हजरते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, चार आदतें ऐसी है कि अगर यह चारों किसी एक शख्स में जमा हो जाएं तो वह पक्का मुनाफिक़ है,(१) वह शख्स जो बात करे तो झूट बोले,(२) और जब वादा करे तो वादा खिलाफी करे,(३) और जब मुआहिदा करे तो उसे पूरा ना करे,(४) और जब किसी से लड़े तो गाली गलौज पर उतर आएऔर अगर किसी शख्स के अंदर इन चार आदतों में से एक ही आदत है, तो उसके अंदर निफाक़ की एक आदत है जब तक कि वह उसे छोड़ ना दे,(सहीह बुखारी क हदीस नंबर ३१७८)

(۵) عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مَسْعُوْ دٍ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَلَيْكُمْ بِالصِّدْقِ فَإِنَّ الصِّدْقَ يَهْدِي إِلَى الْبِرِّ وَإِنَّ الْبِرَّ يَهْدِي إِلَى الْجَنَّةِ وَمَا يَزَالُ الرَّجُلُ يَصْدُقُ حَتَّى يُكْتَبَ عِنْدَ اللَّهِ عَزَّ وَجَلَّ صِدِّيقًا وَإِيَّاكُمْ وَالْكَذِبَ فَإِنَّ الْكَذِبَ يَهْدِي إِلَى الْفُجُورِ وَإِنَّ الْفُجُورَ يَهْدِي إِلَى النَّارِ وَمَا يَزَالُ الرَّجُلُ يَكْذِبُ وَيَتَحَرَّى الْكَذِبَ حَتَّى يُكْتَبَ عِنْدَ اللَّهِ عَزَّ وَجَلَّ كَذَّابًا

      हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया सच्चाई को अपने ऊपर लाज़ीम करलो, क्योंकि सच नेकी की राह दिखाता है और नेकी जन्नत की राह दिखाती है और इंसान मुसलसल सच बोलता रहता है यहां तक कि अल्लाह के यहां उसे सिद्दीक़ लिख दिया जाता है और झूट से अपने आप को बचाओ, क्योंकि झूट गुनाह का रास्ता दिखाता है और गुनाह जहन्नम की राह दिखाता है और इंसान मुसलसल झूट बोलता और उसी में गौरो फिक्र करता रहता है यहां तक कि अल्लाह के यहां उसे कज़्ज़ाब लिख दिया जाता है(मुसनद अहमद हदीस नंबर ३४५६)

 (۶) عَنْ  بَهْزِ بْنِ حَكِيمٍ عَنْ أَبِيهِ عن جده ، قَالَ : قَالَ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ : وَيْلٌ لِمَنْ يُحَدِّثُ فَيَكْذِبُ لِيُضْحِكَ بِهِ الْقَوْمَ ، وَيْلٌ لَهُ وَيْلٌ لَهُ(مشکوۃ صفحہ ۴۱۲،باب حفظ اللسان والغیبۃ والشتم ،فصل ثانی)

    हज़रत बहज़ बिन हकीम अपने वालिद और वह अपने दादा ह से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख्स लोगों को हंसाने के लिए अपने बयान में झूट बोले उस पर अफसोस उस पर अफसोस,(मुसनद अहमद, जामे तिर्मीजी, दारिमी, सनन अबू दाऊद अदब का बयान हदीस नंबर ४९९०)

(۷) عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مَسْعُودٍ، قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏  عَلَيْكُمْ بِالصِّدْقِ فَإِنَّ الصِّدْقَ يَهْدِي إِلَى الْبِرِّ، ‏‏‏‏‏‏وَإِنَّ الْبِرَّ يَهْدِي إِلَى الْجَنَّةِ، ‏‏‏‏‏‏وَمَا يَزَالُ الرَّجُلُ يَصْدُقُ وَيَتَحَرَّى الصِّدْقَ حَتَّى يُكْتَبَ عِنْدَ اللَّهِ صِدِّيقًا، ‏‏‏‏‏‏وَإِيَّاكُمْ وَالْكَذِبَ، ‏‏‏‏‏‏فَإِنَّ الْكَذِبَ يَهْدِي إِلَى الْفُجُورِ، ‏‏‏‏‏‏وَإِنَّ الْفُجُورَ يَهْدِي إِلَى النَّارِ، ‏‏‏‏‏‏وَمَا يَزَالُ الْعَبْدُ يَكْذِبُ وَيَتَحَرَّى الْكَذِبَ حَتَّى يُكْتَبَ عِنْدَ اللَّهِ كَذَّابًا ، ‏‏‏‏‏‏وَفِي الْبَابِ عَنْ أَبِي بَكْرٍ الصِّدِّيقِ، ‏‏‏‏‏‏وَعُمَرَ، ‏‏‏‏‏‏وَعَبْدِ اللَّهِ بْنِ الشِّخِّيرِ، ‏‏‏‏‏‏وَابْنِ عُمَرَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ أَبُو عِيسَى:‏‏‏‏ هَذَا حَدِيثٌ حَسَنٌ صَحِيح

 हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया सच बोलो, इसलिए कि सच नेकी की तरफ रहनुमाई करता है और नेकी जन्नत की तरफ रहनुमाई करती है, आदमी हमेशा सच बोलता है और सच की तलाश में रहता है, यहां तक कि वह अल्लाह के नज़दीक सच्चा लिख दिया जाता है, और झूट से बचो इस लिए कि झूट गुनाह की तरफ रहनुमाई करता है और गुनाह जहन्नम में ले जाता है, आदमी हमेशा झूट बोलता है और झूट की तलाश में रहता है, यहां तक कि अल्लाह के नज़दीक झूटा लिख दिया जाता है,(जामे तिर्मीजी, नेकी व सिला रहमी का बयान हदीस नंबर १९७१)

 (۸) عَنِ ابْنِ عُمَرَ، أَنّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:‏‏‏‏  إِذَا كَذَبَ الْعَبْدُ تَبَاعَدَ عَنْهُ الْمَلَكُ مِيلًا مِنْ نَتْنِ مَا جَاءَ بِهِ ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ يَحْيَى:‏‏‏‏ فَأَقَرَّ بِهِ عَبْدُ الرَّحِيمِ بْنُ هَارُونَ، ‏‏‏‏‏‏فَقَالَ:‏‏‏‏ نَعَمْ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ أَبُو عِيسَى:‏‏‏‏ هَذَا حَدِيثٌ حَسَنٌ غَرِيبٌ، ‏‏‏‏‏‏لَا نَعْرِفُهُ إِلَّا مِنْ هَذَا الْوَجْهِ، ‏‏‏‏‏‏تَفَرَّدَ بِهِ عَبْدُ الرَّحِيمِ بْنُ هَارُونَ

       हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हूमा से रिवायत है कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब बंदा झूट बोलता है तो उस झूट की बदबू की वजह से फरिश्ता उस से एक मील दूर भागता है,(जामे तिर्मीजी सफा ४१३/नेकी व सीला रहमी का बयान हदीस नंबर १९७२)

(۹) وعن صفوان بن سليم أنه قيل لرسول الله صلى الله عليه وسلم أيكون المؤمن جبانا ؟ قال نعم . فقيل أيكون المؤمن بخيلا ؟ قال نعم . فقيل أيكون المؤمن كذابا ؟ قال لا . رواه مالك والبيهقي في شعب الإيمان مرسلا

    और हज़रत सबवान इब्न सलीम रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा गया कि क्या मोमिन बुज़दिल हो सकता है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया हो सकता है ।फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा गया क्या मोमिन बखील हो सकता है ?आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया हो सकता है ।फिर जब आपसे पूछा गया कि क्या मोमिन बहुत झूटा हो सकता है? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि नहीं। इस रिवायत को मालिक ने और बैहक़ी ने शअबुल ईमान में बतरीक़ इरसाल नक़्ल किया है। (मिशकातुल मसाबीह, सफा ४१४/फस्ल सालिस, आदाब का बयान हदीस नंबर ४७६१)

(۱۰) وعن أبي هريرة قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم إن العبد ليقول الكلمة لا يقولها إلا ليضحك به الناس يهوي بها أبعد ما بين السماء والأرض وإنه ليزل عن لسانه أشد مما يزل عن قدمه . رواه البيهقي في شعب الإيمان

       और हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया हक़ीक़त यह है कि जब बंदा एक बात कहता है और सिर्फ इस लिए कहता है कि उसके ज़रिआ लोगों को हंसा ए तो वह इस बात की वजह से (दोज़ख में) जा गिरता है और इतनी दूर जा गिरता है जो ज़मीन व आसमान के दरमियान फासला से भी ज़्यादा होती है, और यह भी हक़ीक़त है कि बंदा अपने क़दमों के ज़रिआ फिसलने से ज़्यादा अपनी ज़बान के ज़रिआ फिसलता है (मिशकातुल मसाबीह, आदाब का बयान हदीस नंबर ४७३८)

(११) हज़रत क़ैस रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू फरमाते हैं

وَسَمِعْتُ أَبَا بَكْرٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ يَقُولُ يٰٓاَ يُّهَا النَّاسُ إِيَّاكُمْ وَالْكَذِبَ فَإِنَّ الْكَذِبَ مُجَانِبٌ لِلْإِيمَانِ

     हज़रत सिद्दीक़े अकबर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू को यह फरमाते हुए सुना कि झूट से अपने आप को बचाओ क्योंकि झूट ईमान से अलग है,(मसनद अहमद हजरत सिद्दीक़े अकबर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू की मरवियात
 हदीस नंबर १६)

    इन अहादीसे तैयबा से मंदरजा ज़ेल बातें मालूम हुई(१) सच बोलने वाला और उसकी आदत बनाने वाला रब के नज़दीक सिद्दीक़ लिखा जाता है और सिद्दीक़ का ठिकाना जन्नत है, और जो झूट बोलने की आदत बना लेता है रब के नज़दीक वह कज़्ज़ाब लिखा जाता है और उस के लिए सख्त अज़ाबों की वईदें हैं,(२) झूट बोल कर हंसाना जैसा कि "अप्रैल फूल" मनाने वाले करते हैं ऐसे लोगों के बारे में नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया खराबी है खराबी है (यानी दर्दनाक अज़ाब है)(३) झूट बोलने से जो बदबू मुंह से निकलती है उसे से फरिश्ते १ मील दूर हो जाते हैं (यानी उस से रहमत दूर हो जाती है और वह रहमत से महरूम हो जाता है)(४) झूट बोलना गोया अमानत में खयानत करना है,(५) मोमिन झूटा नहीं हो सकता (यानी झूट की आदत बनाना मोमिन की शान नहीं)(६) झूट बोलना ईमान को बर्बाद करना है,(७) मज़ाक़ में भी झूट बोलना गुनाहे कबीरा है,(८) लोगों को हंसाने के लिए भी झूट बोलना गुनाहे कबीरा है,(९) सच बोलना, वादा को पूरा करना, अमानत में खयानत ना करना, ज़िना से बचना, गैर महरम पर निगाह ना डालना, और किसी को बिला वजह ऐज़ा ना देना मोमिन होने की निशानी है,(१०) झूट की आदत बना लेना मुनाफिक़त की निशानी है,

     लिहाज़ा ए मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीवानों हमेशा सच बोलने की कोशिश करो कि यही निजात का रास्ता है और अगर सच ना बोल सको तो झूट भी ना बोलो बल्कि बेहतर है कि खामोशी एख्तियार कर लो यही कुतुबे अहादीस से साबित है चंद हदीसें दर्ज हैं मुलाहिज़ा करें

(۱) وعن عبادة بن الصامت أن النبي صلى الله عليه وسلم قال اضمنوا لي ستا من أنفسكم أضمن لكم الجنة اصدقوا إذا حدثتم وأوفوا إذا وعدتم وأدوا إذا ائتمتنم واحفظوا فروجكم وغضوا أبصاركم وكفوا أيديكم

        और हज़रत उबादा बिन सामित रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया तुम लोग अपने बारे में मुझे ६ चीज़ों की ज़मानत दो यानी छै बातों पर अमल करने का अहद कर लो तो मैं निजात पाए हुए और सालिहीन के साथ तुम्हारे जन्नत में जाने का ज़ामिन बनता हूं,(१) जब भी बोलो सच बोलो,(२) वादा करो तो पूरा करो(३) तुम्हारे पास अमानत रखी जाए तो अमानत अदा करो,(४) अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करो (यानी हराम कारी से बचो)(५) अपनी निगाह को महफूज़ रखो यानी उस चीज़ की तरफ नज़र उठाने से परहेज़ करो जिसको देखना जायज़ नहीं,(६) अपने हाथों पर क़ाबू रखो यानी अपने हाथों को नाहक़ मारने और हराम व मकरूह चीज़ों को पकड़ने से बाज़ रखो, या यह कि अपने आपको ज़ुल्म व तअदी करने से बाज़ रखो,(मिशकातुल मसाबीह, सफा ४१५/आदाब का बयान हदीस नंबर ४७६९)

(۲) عَنْ عَبد اللہ بن عمر قال قال رسول اللہ ﷺ مَنْ صَمَتَ نَجَا

         हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो खामोश रहा वह निजात पाया,(मिशकातुल मसाबीह सफा ४१३)

(۳) (عن عقبة بن عامر قال لقيت رسول الله صلى الله عليه وسلم فقلت ما النجاة ؟ فقال أملك عليك لسانك وليسعك بيتك وابك على خطيئتك . رواه أحمد والترمذي

    हजरते उक़्बा बिन आमीर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुलाक़ात की और अर्ज़ किया कि मुझे बताइए कि दुनिया और आखिरत में निजात का ज़रिआ क्या है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया अपनी ज़बान को क़ाबू में रखो तुम्हारा घर तुम्हारा किफायत करे और अपने गुनाहों पर रोओ,(मिशकातुल मसाबीह सफा ४१३/फस्ल सानी/हदीस नंबर ४७४०)

(۴) (عن عمران بن حصين أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال مقام الرجل بالصمت أفضل من عبادة ستين سنة

   हज़रत इमरान बिन हसीन रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया चुप रहने की वजह से आदमी को जो दर्जा हासिल होता है वह साठ (६०) साल की इबादत से अफज़ल है,(मिशकातुल मसाबीह, सफा ४१४/हदीस नंबर ४७६४)

इस्तहज़ा करना कैसा है ?

    इस्तहज़ा करना यह भी जायज़ नहीं बल्कि उसकी भी मुमानअत आई और ठठ्ठा और मज़ाक़ करने वाले को जाहिल से तश्बीह दी गई है, बयान किया जाता है कि बनी इसराइल में आमील नामी एक आबिद था उसके चचा ज़ाद भाई ने बत़मअ ए  वरासत (माल के वारिस बनने के लालच में) उसको क़त्ल कर के दूसरी बस्ती के दरवाज़े पर डाल दिया और खुद सुब्ह को उस खून का मुद्दई बना वहां के लोगों ने हज़रत ए मूसा अलैहिस्सलाम से दरख्वास्त की कि आप दुआ फरमाएं कि अल्लाह तआला हक़ीक़ते हाल ज़ाहिर फरमाए, इस पर हुक्म हुआ कि एक गाय जिब्ह कर के उसके किसी हिस्से से मक़तूल को मारें वह  ज़िंदा हो कर क़ातिल को बताएगा,जैसा कि कुरआन मुक़द्दस में है

وَاِذْ قَالَ مُوْ سٰی لِقَوْمِہٖ اِنَّ اللّٰہَ یَأْ مُرُ اَنْ تَذْ بَحُوْا بَقَرَ ۃً

    और जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से फरमाया खुदा तुम्हें हुक्म देता है कि एक गाय ज़िब्ह करो तो क़ौम ने कहा

قَالُوْا اَتَتَّخِذُنَا ھُزُوًا

बोले कि आप हमें मसखरा बनाते हैं (मज़ाक़ करते हैं)

 तो मूसा अलैहिस्सलाम ने फरमाया

اَعُوْ ذُ بِاللّٰہِ اَنْ اَکُوْنَ مِنَ الْجٰہِلِیْنَ

   खुदा की पनाह कि मैं जाहिलों में से हूं (यानी मज़ाक़ करना जाहिलों का तरीक़ा है अशराफ का तरीक़ा नहीं,(तफसीरे खज़ाईनुल इरफान पारा १ सूरह बक़रा आयत ६७)

   और दूसरे मक़ाम पर अल्लाह तआला फरमाता है

یٰٓاَیُّھَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْ ا لَا یَسْخَرْ قَوْ مٌ مِّنْ قَوْمٍ عَسیٰٓ اَ نْ یَّکُوْ نُوْ ا خَیْرًا مِّنْھُمْ وَلَا نِسَآ ئٌ مِّنْ نِّسَا ئٍ عَسیٰٓ اَنْ یَّکُنَّ خَیْرًا مِّنْھُنَّ

    यानी ऐ ईमान वालो ना मर्द मर्दों से हंसी (मज़ाक़ करें) अजब नहीं कि वह उन हंसने वालों से बेहतर हों, और ना औरतें औरतों से (मज़ाक़ करें) दूर नहीं कि वह उन हंसने वालियों से बेहतर हों,(पारा २६ सुरह हजरात आयत ११)

         हज़राते मोहतरम इन आयाते मुक़द्दसा से साबित होता है कि इस्तहज़ा करना यानी ठठ्ठा करना जाहिलों का काम है इस लिए दूसरे मक़ाम पर अल्लाह तआला ने फरमाया कि कोई क़ौम किसी क़ौम से ना हंसें फिर फरमाया औरतें औरतों से ना हंसें (मज़ाक़ ना उड़ाए)अफसोस सद अफसोस कि आज का मुसलमान फैशन के नशा में आकर "अप्रैल फूल" मनाने में ना जाने कितने खुराफात को इकट्ठा करता है और गुनाहे कबीरा का मूर्तकिब होता है, अल्लाह तआला हर मुसलमान मर्द व औरत को "अप्रैल फूल" मनाने से महफूज़ रखे

آمین بجاہ سید المرسلین علیہ واٰلہ افضل الصلوٰۃ والتسلیم

 वादा खिलाफी करना कैसा है ?

        "अप्रैल फूल" मनाने में वादा के खिलाफ किया जाता है यह भी नाजायज़ है, हदीस शरीफ में है कि जब वादा करो तो उसको पूरा करो (मिशकात सफा ४१४)

   प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुलामों जब वादा करो तो उसको पूरा भी किया करो क्योंकि वादा को पूरा करना अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम की सुन्नत है,जैसा कि क़ुरआन मुक़द्दस में हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का वाक़िआ दर्ज है कि एक मर्तबा किसी मक़ाम पर आप से कोई कह गया था कि आप यहीं ठहरे रहें जब तक मैं वापस ना आऊं, आप उस जगह उस के इंतज़ार में तीन रोज़ ठहरे रहे, चुनांचा अल्लाह तबारक व तआला फरमाता है

وَاذْکُرْ فِی الْکِتٰبِ اِسْمٰعِیْلَ اِنَّہٗ کَانَ صَادِقَ الْوَعْدِ وَکَا نَ رَسُوْلاً نَّبِیًّا

    और किताब (क़ुरआन मुक़द्दस) में इस्माइल को याद करो बेशक वह वादे का सच्चा था और रसूल था गैब की खबरें बताने वाला,(खज़ाईनुल इरफान पारा १६ सूरह मरियम ५४)

    हदीस शरीफ में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अबिलहुसमा से रिवायत है वह फरमाते हैं कि ऐलाने नबूवत से पहले मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से खरीदो फरोख्त किया और आपका कुछ बक़ाया रह गया मैं ने वादा किया कि मैं उसी जगह वह चीज़ लाता हूं फिर मैं भूल गया तीन (३) दिन के बाद मुझे याद आया तो हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस जगह थे फरमाया कि तुमने मुझ पर मशक़्क़त डाल दी मैं तीन (३) दिन से यहां तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा हूं(मिशकात सफा४१६)

     याद रहे कि यह वाक़िआ उस वक़्त का है जब एलाने नबूवत का हुकुम भी नहीं हुआ था तो उस वक़्त भी हमारे नबी इस तरह वादे को पूरा फरमाया करते थे कि तीन तीन दिन तक किसी का इंतज़ार किया करते हैं और क़ुरआन ने फरमाया कि उनकी मुबारक ज़िंदगी तुम्हारे लिए नमून ए अमल है लिहाज़ा हमें भी चाहिए कि हम भी अपने वादा को पूरा करने के लिए उस वक़्त तक को कोशां रहें जब तक कोई शराई क़बाहत ना आए जैसे कि वादा पूरा करने की फिक्र में नमाज़ छोड़ दे या रोज़ा छोड़ दे या वालिदैन को ऐज़ा दे, नहीं बल्कि इन तमाम चीज़ों का लिहाज़ रख कर वादा को पूरा किया जाए,जैसा की एक दूसरी हदीस पाक हज़रत ज़ैद बिन अरक़म रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से मरवी है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो किसी शख्स से वादा करे फिर उनमें से एक नमाज़ के वक़्त तक ना आए और जाने वाला नमाज़ के लिए चला जाए तो उस पर कुछ गुनाह नहीं(मिशकात सफा ४१६)

   और अगर कोई वादा करे और वादा को पूरा करने का इरादा भी हो मगर किसी मजबूरी के सबब पूरा ना कर सके तो उस पर गुनाह नहीं, कि यह बवजहे मजबूरी है,जैसा कि हज़रत ज़ैद बिन अरक़म रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब कोई शख्स अपने भाई से वादा करे और उसकी नियत पूरा करने की हो फिर (मजबूरी के सबब) पूरा ना कर सके यानी वादा पर ना आ सके तो उस पर गुनाह नहीं(मिशकात)

मुसलमान को ऐज़ा पहुंचाना कैसा है ?

   "अप्रैल फूल" मनाना मुसलमानों को ऐज़ा पहुंचाना है यह भी गुनाहे कबीरा है,क़ुरआन करीम में है

اِنَّ الَّذِیْنَ فَتَنُوْا الْمُؤْ مِنِیْنَ  وَ الْمُؤْ مِنٰتِ ثُمَّ لَمْ یَتُوْ بُوْافَلَھُمْ عَذَابُ جَہَنَّمَ وَلَھُمْ عَذَابُ الْحَرِیْقِ

     बेशक जिन्होंने ऐज़ा दी मुसलमान मर्दों और मुसलमान औरतों को फिर तौबा ना कि उनके लिए जहन्नम का अज़ाब है और उनके लिए आग का अज़ाब,(कंज़ुल ईमान सूरह बुरूज आयत नंबर १०)

     अल्लाह तआला हर बंदे मोमिन मर्द औरत को समझने की तौफीक़ अता फरमाए और वादा खिलाफी से महफूज़ फरमा कर शरीअत ए मुतह्हरा का पाबंद बनाए,

آمین  یا رب العلمین بجاہ سید المرسلین  ﷺاللھم بدیع السموات والارض ذالجلال والاکرام خا لق الیل والنہار اسئلک ان
تصلی وتسلم علی اول خلق اللہ سیدنا محمد ن المصطفی وعلی الہ و صحبہ اصولہ و فرو عہ وابنہ الغوث الاعظم الجیلا نی
اجمعین وآخر دعونا ان الحمد للہ رب العلمین

अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
गायडीह पोस्ट चमरुपुर जिला बलरमपुर यू पी 
८ रबीउलआखिर १४३८ हि 
७ जनवरी २०१७ शनिवार 

हिंदी ट्रांसलेट 
 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी 
(दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
१० जमादिल ऊला १४४३  हि
१५  दिसंबर२०२१  बरोज़ बुधवार



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